Friday, December 13, 2019

श्न:-अतीत में जितने सद्गुरू हुए, उनमें भगवान कृष्ण पूर्णावतार कहे गए हैं। मेरा विश्वास है कि आपकी अभिव्यक्ति इतनी उंची और श्रेष्ठ है, आने वाला युग आपको कृष्ण से भी ऊपर रखेगा। क्या इस पर आप कुछ प्रकाश डालेंगे❓

प्रश्न:-अतीत में जितने सद्गुरू हुए, उनमें भगवान कृष्ण पूर्णावतार कहे गए हैं। मेरा विश्वास है कि आपकी अभिव्यक्ति इतनी उंची और श्रेष्ठ है, आने वाला युग आपको कृष्ण से भी ऊपर रखेगा। क्या इस पर आप कुछ प्रकाश डालेंगे
🌰ओशो:- उस जगत में न कोई छोटा होता , न बड़ा। न तो कृष्ण बड़े है, न राम छोटे। न कृष्ण बड़े है न क्राइस्ट छोटे हैं। न कृष्ण बड़े है, न महावीर छोटे हैं। छोटे और बड़े का हिसाब, अज्ञानी का हिसाब है, अंधेरे के मापदंड है, प्रकाश में सब मापदंड खो जाते हैं।
लेकिन भक्त के पास तो प्रेम की आंख होती है। इसलिए जो कृष्ण को प्रेम करता है, स्वभावः, कृष्ण उसके लिए सब से बड़े हैं। इसमें भी कुछ भूल नहीं है। यह भक्त की तरफ से बताई गई बात है। भक्त तो अंधेरे में खड़ा है। उसे तो सिर्फ एक दीए का दर्शन हुआ है, वह कृष्ण का दीया है। उसे महावीर का दीए का कोई पता नहीं। उसे तो एक ही दीए से पहचान हुई है, वह कृष्ण का दीया है। तो वह कहता है, यह दीया सबसे बड़ा है। कोई दीया इतना बड़ा नहीं है, सब दीए इससे छोटे हैं। वह असल में कह हीं नहीं रहा है कि सब दीए इतने छोटे हैं, वह इतना ही कह रहा है मेरे हृदय को इस दीए ने ऐसा भर दिया है कि इससे बड़ा कोई दीया नहीं हो सकता। जगह ही नहीं बची मे रे हृदय में, अब और बड़ा क्या हो सकता है?
भक्त का आंखों मजनू की आंख है। शिष्य की आंख तो मजनू की आंख है। वह एक के प्रेम में पड़ गया। बात बिलकुल सही है। कोई जरूरत नही भी नहीं है मजनू को, कि लैला से सुंदर कोई स्त्री कहीं हो, ऐसा वह माने। कोई कारण भी नहीं है। श्रद्धा तो पूर्ण होती है। जब श्रद्धा पूर्ण होती है, तो सब खो जाता है, एक ही रह जाता है। श्रद्धा तो अनन्य होता है। दूसरे कोई बचते नहीं। तो जिसने कृष्ण को प्रेम किया है, कृष्ण उसके लिए पूर्णावतार हैं। जिसने महावीर को प्रेम किया है, उसके लिए महावीर तीर्थंकर हैं, कृष्ण कुछ भी नहीं।
अगर तुम्हें मुझसे प्रेम हो गया, तो जो तुम कह रहे हो, मेरे संबंध में नहीं है,वह तुम अपने प्रेम के संबंध में कह रहें हो; वह मेरे संबंध में नहीं, अपनी श्रद्धा के संबंध में कह रहे हो।
आदमी सदा अपने संबंध में ही कहता है। किसी और के संबंध में कहने का कोई उपाय नहीं है। बस इतनी सी बात है। उस लोक में कोई आगे नहीं, कोई पीछे नहीं, कोई छोटा नहीं,कोई बड़ा नहीं मोहम्म,महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट-
जैसे ही अंधेरा का जगत समाप्त हुआ, सभी एक जैसे हो जाते। सब रंग, सब भेद, सब भिन्नताएं अंधेरे में हैं। जागे हुए पुरुषोंमे कोई भेद नहीं है।
लेकिन तुम सभी जागे पुरूषों को प्रेम तो न कर पाओगे। सभी जागे पुरूषों को प्रेम करना हितकर भी नही नहीं होगा; क्योंकि जितने तुम्हारे प्रेम -पात्र होंगे, उतना तुम्हारा हृदय बांट जाएगा। और अगर हृदय बांट जाए, तो श्रद्धा भी बांट जाएगी। और बंटी हुई श्रद्धा से तुम कभी सत्य तक न पहुँच सकोगे..... •●○● ओशो ●○●•
🔯पिव पिव लागी प्यास,
🌷{सं• स्वामी देवगीत} मेरे मित्रों; सप्रेम नमन

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