Monday, November 28, 2016

दुख

यदि तुम पलायन न करो, यदि तुम दुख को मौजूद होने दो, यदि तुम उससे आमना-सामना करने को तैयार हो, यदि तुम किसी तरह से उसे भूल जाने का प्रयास नहीं कर रहे हो, तब तुम अलग ही व्यक्ति हो। दुखहै तो, पर बस तुम्हारे आसपास; यह केंद्र में नहींहै, वह परिधि परहै। दुख के लिए केंद्र पर होना असंभवहै; ऐसा वस्तु का स्वभाव नहींहै। यह हमेशा परिधि परहै और तुम केंद्र पर हो। 


तो जब तुम उसे होने देते हो, तुम पलायन नहीं करते, तुम भागते नहीं, तुम भयग"स्त नहीं होते, अचानक तुम इस बात के प्रति सजग होते हो कि दुख परिधि परहै जैसे कि कहीं और घट रहाहै, न कि तुम्हारे साथ, और तुम उसे देख रहे हो। तुम्हारे सारे अंतरतम पर एक सूक्ष्म आनंद फैल जाताहै क्योंकि तुमने जीवन का एक मौलिक सत्य पहचान लिया कि तुम आनंद हो, न कि दुख। 

मौन

मौन होना सीखो। और कम से कम अपने मित्रों के साथ, अपने प्रेमियों के साथ, अपने परिवार के साथ, यहां अपने सहयात्रियों के साथ, कभी कभार मौन में बैठो। गपशप मत किए चले जाओ, बातचीत मत किए चले जाओ। बात करना बंद करो, और सिर्फ बाहरी ही नहीं--भीतरी बातचीत भी बंद करो। अंतराल बनो। बस बैठ जाओ, कुछ मत करो, एक-दूसरे के लिए उपस्थिति मात्र बन जाओ। और शीघ्र ही तुम संवाद का नया ढंग पा लोगे। और वह सही ढंगहै। 


कभी-कभार मौन में संवाद स्थापित करना प्रारंभ करो। अपने मित्र का हाथ थामे, मौन बैठ जाओ। बस चांद को देखते, चांद को महसूस करो, और तुम दोनों शांति से इसे महसूस करो। और देखना, संवाद घटेगा--सिर्फ संवाद ही नहीं, बल्कि घनिष्ठता घटेगी। तुम्हारे हृदय एक लय में धड़कने लगेंगे। तुम एक ही तरह का अवकाश महसूस करने लगोगे। तुम एक ही तरह का आनंद महसूस करने लगोगे। तुम एक-दूसरे की चेतना पर आच्छादित होने लगोगे। वह घनिष्ठताहै। बिना कुछ कहे तुमने कह दिया, और वहां किसी तरह की गलतफहमी नहीं होगी।