Thursday, December 12, 2019

एक मौनी बाबा थे

मेरे एक मित्र हैं; मेरे साथ एक बार कलकत्ता यात्रा पर गए। रास्ते में यूं बात कर रहे थे। एक मौनी बाबा थे, उनके वे भक्त थे। मैंने उनसे पूछा कि मौनी बाबा में तुम्हें क्या खास बात दिखाई पड़ती है?
अरे, उन्होंने कहा, खास बात! आज बीस साल से मौन हैं!
मैंने कहा, इसमें तो कुछ खास बात नहीं। मौन होने से क्या होना है? मौन होने से उनकी प्रतिभा में क्या निखार आ गया है? मौन होने से उनके जीवन में कौन से दीए जल गए हैं? अगर वे बुद्धू थे बीस साल पहले, तो मौन होने से और बुद्धू हो गए होंगे!
उन्होंने कहा, अरे, आप भी कैसी बात करते हैं! अगर वे बुद्धू होते, तो इतने लोग उनको कैसे पूजते? कोई मैं अकेले ही पूजता हूं। कितने लोग पूजते हैं!
अब, मैंने कहा, यह दूसरी बात तुम उठा रहे हो। उन दूसरों से मैं पूछूंगा तो वे कहेंगे कि कितने लोग पूजते हैं। उसमें तुम्हारी गिनती करेंगे। तो तुम दूसरों को देख कर पूज रहे हो!
मैंने कहा, तुम एक काम करो। मेरे साथ तुम कलकत्ता चल ही रहे हो, तुम तीन दिन मौन रह जाओ। और मैं देखो तुम्हारी पूजा करवा दूंगा।
उन्होंने कहा, आप क्या कहते हैं! मेरी कौन पूजा करेगा? मुझमें कुछ है ही नहीं!
मैंने कहा, तुम चुप तो रहो। तीन दिन चुप रहना। और पूरा भी नहीं कहता, रात जब सब चले जाएं, दरवाजा बंद करके, तुम्हें जो भी मुझसे कहना हो, कह लेना। क्योंकि दिन भर रुके रहोगे, घबड़ा जाओगे। दुकानदार आदमी हो, चौबीस घंटे बात करते हो।
तो रात एकांत में तुम मुझसे बोलने की स्वतंत्रता रखना। मगर दिन में, लाख कुछ हो जाए, अपने को बिलकुल बांधे ही रखना। बोलना ही मत। कुछ अगर बोलना ही होगा तुम्हारे लिए, तो मैं बोल दूंगा।
कहा, जैसी आपकी मर्जी। उनको बात जंची, कि करके देख लेने जैसी है।
कलकत्ते में मैं ठहरता था सोहनलाल दूगड़ के घर पर। वे कलकत्ता के एक बड़े करोड़पति थे। जब मैं उनके घर पहुंचा, वे मुझे लेने आए, तो उन्होंने पूछा कि आपके साथ कौन हैं?
मैंने कहा, ये मौनी बाबा हैं।
मौनी बाबा! इनकी क्या खूबी है?
मैंने कहा, ये तीस साल से मौन हैं!
वे एकदम उनके पैरों पर गिरे! वे बेचारे सज्जन, जो दुकानदारी करते थे, कपड़ा बेचते थे; और कपड़ा भी कुछ खास नहीं, कटपीस की एक छोटी सी दुकान थी। सोहनलाल दूगड़ जैसा करोड़पति उनके पैरों पर गिरे! सकुचाए भी। मैंने उनको इशारा किया कि सकुचाना मत।
अब जब मौनी बाबा बन गए, तो अब डरना मत। अभी तो बहुत कुछ होगा; यह तो शुरुआत है। जब सोहनलाल दूगड़ तुम्हारे पैर में गिरेंगे, तो अभी तुम कलकत्ते के सब मारवाड़ियों को गिरते देखोगे। तुम घबड़ाते क्या हो; तुम रुको जरा।
वे तो इतने घबड़ा गए कि वे मुझे हाथ से धक्का मारें कि भैया, यह बात ठीक नहीं!
घर पहुंचे। सोहनलाल ने जल्दी से अपनी पत्नी को बुलाया कि मौनी बाबा! मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गए कि मौनी बाबा आए हैं! तीस साल से मौन हैं! और मौनी बाबा पर जो गुजर रही है, वह मैं जानूं! कि वे रात का वक्त देख रहे हैं कि कब रात आए, कि अपने दिल की मुझसे कहें!
जैसे ही रात आई, दरवाजा जल्दी से बंद करके मेरे पैरों पर गिर पड़े और कहा कि मुझे माफ करो। मुझे यह काम करना ही नहीं! मुझे जाने दो! मैं तो अभी भागे जाता हूं; रात को ही चुपचाप निकल जाऊंगा। यह क्या झंझट मेरे पीछे लगा दी!
इतने-इतने बड़े लोग, जिनके घर मुझे अगर मिलने भी जाना होता, तो कोई मिलने नहीं देता। चपरासी भीतर नहीं घुसने देता। और वे मेरे पैर पर गिरते हैं तो मुझको बड़ा संकोच लगता है! और स्त्रियां उनकी, सुंदर से सुंदर स्त्रियां मेरे पैर छू रही हैं! यह क्या करवा रहे हो आप?
मैंने कहा, मैं कुछ नहीं करवा रहा हूं। यह मैं तुमको बता रहा हूं कि कैसी-कैसी बेवकूफियां इस देश में हैं। तुम भी उन्हीं बेवकूफों में हो!
जिसकी तुम बीस साल से पूजा कर रहे हो...। और तुम तो अभी सिर्फ पांच-छह घंटे ही मौन रहे हो, तो यह चमत्कार! अभी तुम तीन दिन रुको तो! अभी तुम देखना, इलाज शुरू हो जाएंगे, बीमारियां ठीक होने लगेंगी।
अरे, उन्होंने कहा, आप क्या कह रहे हैं! मुझमें कुछ चमत्कार नहीं, कोई शक्ति नहीं!
तुम, मैंने कहा, फिक्र ही मत करो। सब आ जाएगा। मौन भर रहो। और दिन भर रहो मौन। मगर दिन में बोलना मत। और मुझको धक्के वगैरह भी मत मारना। क्योंकि लोगों को शक पैदा हो जाएगा कि बात क्या है! तुम तो अपना आंखें बंद कर लिए। अगर बिलकुल सहने के बाहर हो जाए, आंख बंद कर लिए। अपने भीतर ही भीतर नमोकार मंत्र पढ़ने लगे कि होने दो जो हो रहा है।
तीन दिन में तो उनकी डुंडी पिट गई! अखबारों में फोटो आ गए! रात को वे मुझे फोटो दिखाएं कि यह क्या करवा रहे हो? अगर मेरे घर पता चल गया; अगर मेरे पत्नी-बच्चों को पता चल गया; तुम तो मेरा घर लौटना तक बंद कर दोगे!
ये अखबार अगर वहां पहुंच गए, तो मेरी मुसीबत हो जाएगी। और फिर मेरी दुकान की भी तो सोचो! और इधर मैं कटपीस खरीदने आया हूं; तुम नाहक रास्ते में मिल गए! अब मैं कटपीस कहां खरीदूंगा?
यह कलकत्ते का बाजार तो खत्म! क्योंकि जिनके यहां से मैं कटपीस खरीदता था, वे लोग भी मेरे पैर छू रहे हैं! और कई तो मुझे गौर से देखते भी हैं कि यह शक्ल कुछ पहचानी मालूम होती है!
एक-दो आदमियों ने प्रश्न भी किया कि ये तीस साल से मौन हैं? यह शक्ल कुछ पहचानी मालूम होती है!
मैंने कहा, देखा होगा किसी पिछले जनम में! अरे, यह जनम-जनम का नाता है।
उन्होंने कहा, यह बात ठीक!
ये कोई साधारण साधक हैं! ये तो जन्मों से साधना कर रहे हैं। कई बार तुम मिले होओगे पिछले जन्मों में, इसलिए शक्ल पहचानी लगती है।
उन्होंने कहा, हां, लगती तो पहचानी सी है शक्ल। मतलब कहीं देखा है। और ऐसा भी नहीं लगता कि पिछले जन्म में देखा है; इसी जनम में देखा है।
मैंने कहा, ये बड़े पहुंचे हुए पुरुष हैं। ये एक ही साथ कई नगरों में एक साथ प्रकट हो जाते हैं!
वे मुझे हुद्दे मारें कि मत ऐसी बातें कहो! मेरी कमीज खींचें कि मत कहो भैया, ऐसी बातें मत कहो! ये बिलकुल झूठ बातें हैं।
मगर लोग मान रहे हैं! मिठाइयां आने लगीं; फल आने लगे। वे रात मुझको कहें कि क्या करवा रहे हो? इतनी मिठाइयां-फल मैं कहां ले जाऊंगा?
मैंने कहा, तुम ले जाना। घर बाल-बच्चों को, मोहल्ले में बंटवा देना।
स्टेशन पर जब उनको लोग छोड़ने आए...कटपीस तो वे खरीद ही नहीं पाए। क्योंकि अब कहां कटपीस खरीदें! और कोई देख ले कटपीस खरीदता, कि मौनी बाबा कटपीस खरीद रहे हैं!
रास्ते भर मुझ पर नाराज रहे कि और सब तो ठीक, मगर कलकत्ते का बाजार खराब करवा दिया! अब मैं कलकत्ता कभी न जा सकूंगा!
मैंने उनसे कहा, तुम घबड़ाओ मत। तुम एक काम करो, दाढ़ी बढ़ा लो। अगली बार जब कलकत्ता जाओ, दाढ़ी-मूंछ बढ़ा कर चले जाना।
हां, उन्होंने कहा, यह बात जंचती है।
मैंने कहा, फिर वे लोग कहेंगे कि देखा है कहीं! तो कहना, अरे देखना वगैरह तो चलता रहता है। कई लोगों की शक्लें एक जैसी होती हैं। और न हो, तो मैं साथ आ जाऊं।
उन्होंने कहा, नहीं, आपके तो साथ आने की कोई जरूरत ही नहीं। आपके साथ तो मैं अब कभी कहीं जाऊंगा नहीं! अगर ट्रेन में मुझे पता भी चल गया कि आप सफर कर रहे हो, तो उस ट्रेन से उतर जाऊंगा।
और मेरे पैर पकड़ कर कहने लगे, इतनी कृपा करो कि ट्रेन में किसी को खबर न हो! मतलब ये ट्रेन के लोग तो जबलपुर भी जाएंगे मेरे साथ ही। अगर वहां तक खबर पहुंच गई, तो सब चौपट समझो!
मेरी पत्नी मुझे मुश्किल में डाल देगी कि तुमसे किसने कहा था कि तुम मौनी बाबा बनो? और तुम कहां से तीस साल मौनी बाबा रहे? तीन दिन के लिए घर से गए, और तीस साल मौनी बाबा हो गए!
फिर दुबारा जब मैं कलकत्ता जाता था, तो लोग उनकी जरूर पूछते थे कि मौनी बाबा नहीं आए? कब आएंगे? मैंने कहा, आएंगे! जरूर आएंगे! उनको स्वागत-सत्कार ज्यादा पसंद नहीं। वे बहुत नाराज हो गए हैं कलकत्ते से! इतना धूम-धड़ाका उनको बिलकुल पसंद नहीं। वे बहुत सीधे-सादे आदमी हैं; मौन, एकांतवास करते हैं।
तुम जिनको धार्मिक कहते हो, जिनको तुम महात्मा कहते हो, कभी सोचो भी, इनके भीतर कहीं भी कोई प्रतिभा का लक्षण दिखाई पड़ता है? कोई मेधा दिखाई पड़ती है?
और अगर मेधा ही न हो, तो ब्रह्मचर्य नहीं है, यह समझ लेना। क्योंकि ब्रह्मचर्य का और क्या सबूत हो सकता है? सबसे बड़ा सबूत होगा प्रतिभा की अभिव्यक्ति; प्रतिभा के हजार-हजार फूल खिल जाना; प्रतिभा के कमल खुल जाना; प्रतिभा की सुगंध उड़ जाना।
उनके कृत्य में भी प्रतिभा होगी, उनके उठने-बैठने में, चलने-फिरने में भी। इसलिए चर्या! चलना-फिरना, उठना-बैठना, उनके जीवन के हर एक कृत्य में तुम एक धार पाओगे, एक चमक पाओगे, एक ओज पाओगे।
लेकिन तुम्हारे धार्मिक नेताओं की जिंदगी में तुम जंग लगी पाओगे। और जितनी ज्यादा जंग चढ़ी हो उन पर, उतने ही तुमको वे जंचेंगे! क्योंकि तुम्हारी धारणाएं, तुम्हारी मान्यताएं...।
अब कोई आदमी खड़ा है दस साल से। खड़ेश्री बाबा हो गए वे!
अब दस साल से खड़े हो, इससे क्या प्रतिभा का लेना-देना है? दुनिया में कौन सा सौंदर्य बढ़ रहा है तुम्हारे खड़े होने से? कौन सी संपदा बढ़ रही है? कौन सा सुख बढ़ रहा है? कौन सी शांति बढ़ रही है?
मगर भक्तगणों की भीड़ लगी हुई है, भजन-कीर्तन चल रहा है, क्योंकि खड़ेश्री बाबा दस साल से खड़े हैं! दस साल से नहीं, दस हजार साल से खड़े हों, इनके खड़े होने से क्या होता है! ये खड़े-खड़े ठूंठ हो गए हों, तो भी क्या होता है! या कोई मौन हो गया!
तुम जिनकी पूजा करते हो, जिनको महात्मा कहते हो, उसमें तुम्हारी धारणाएं ही भर काम कर रही हैं। तुम आंख खोल कर देखते भी नहीं।
आनहद में विसराम-(प्रश्नोउत्तर)-प्रवचन-03

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