Sunday, December 22, 2019

प्राणायाम और प्रत्याहार *


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* प्राणायाम और प्रत्याहार *
प्राणायाम का अर्थ है कि तुम अपने को संकुचित प्राण मत समझो; प्राण को फैलाओ, उसके आयाम को बड़ा करो। तुम बड़े हो, विराट हो। तुमने मान रखा है, छोटे हो। वह छोटा होना सिर्फ तुम्हारी मान्यता है।
जरा गौर से देखो--कहां तुम शुरू होते हो? कहां तुम अंत होते हो? शरीर पर तुम अंत नहीं होते। क्योंकि करोड़ों मील दूर जो सूरज है, अगर वह बुझ जाए तो तुम यहां बुझ जाओगे; तुम उससे जुड़े हो। अरबों-खरबों मील दूर जो चांदत्तारे हैं, उनसे भी रोशनी के तार तुमसे बंधे हैं।
चारों तरफ पृथ्वी के भरा हुआ जो वायुमंडल है, उसके बिना तुम न रह सकोगे; तुम उसी में श्वास ले रहे हो। जो जानते हैं, वे कहते हैं, हम उसमें श्वास ले रहे हैं, ऐसा कहना कठिन है; वही हममें श्वास ले रहा है, ऐसा कहना ज्यादा उचित है। अभी जो श्वास मेरी थी, क्षण भर बाद तुम्हारी हो गई; कह भी नहीं पाऊंगा कि तुम्हारी न रह जाएगी, किसी और की हो जाएगी।
जो शरीर आज तुम्हारा है, कभी वृक्षों में था, कभी पशुओं में था, कभी पक्षियों में था। मरोगे--फिर नदी में बह जाएगा जल, मिट्टी में मिल जाएगी मिट्टी; फिर पौधे उठेंगे, फिर वृक्ष बनेंगे। हो सकता है, तुम्हारे बेटे उन फलों को खाएं, जिनमें तुम्हारी मिट्टी खो गई हो।
सब जुड़ा है, सब संयुक्त है; यहां कोई अलग-थलग नहीं है। हम कोई छोटे-छोटे द्वीप नहीं हैं; एक महाद्वीप है, उसके ही हम सब अंग हैं।
प्राणायाम का अर्थ है: फैलाओ अपने को। प्राणायाम से जिस प्रक्रिया को योग में जाना जाता है, वह केवल तरकीब है फैलाने की। गहरी श्वास लो, कि छिद्र-छिद्र तुम्हारे फेफड़ों का भर जाए; फिर गहरी श्वास उलीचो, कि पूरी श्वास उलिच जाए। जैसे ही तुम इस प्रक्रिया को गहरा करने लगोगे, एक दिन तुम अचानक पाओगे--तुम श्वास नहीं ले रहे, परमात्मा तुममें श्वास ले रहा है।
यह तो केवल विधि है। इस विधि से प्राणायाम होता है; इस विधि से प्राण का विस्तार होता है और प्रतीत होता है कि हम एक महान चैतन्य के छोटे-छोटे अंश हैं, बड़े सागर की बूंदें हैं। बूंद भी गरिमा से भर जाती है फिर। कण भी परमात्मा के प्रसाद से लबालब हो जाता है। तुम्हारी छोटी प्याली में भी सागर लहराने लगते हैं।
'प्राणायाम और प्रत्याहार...'
प्राणायाम है प्राण का फैलाना और प्रत्याहार है घर की तरफ वापसी--लौटना, भीतर आना। प्रत्याहार। अपने में वापस जाना, जहां से आए हैं। जैसे वृक्ष अगर सिकुड़ सके, सिकुड़ कर छोटा पौधा हो जाए; पौधा सिकुड़ सके, बीज हो जाए--तो प्रत्याहार। तुम जो दिखाई पड़ रहे हो, उससे पीछे सरको--भीतर...भीतर...भीतर--उस बीज को, मूल स्रोत को पा लो, जहां से तुम आए हो। गंगा अगर वापस लौट जाए और गंगोत्री में फिर समा जाए, गोमुख में, तो प्रत्याहार। प्रत्याहार का अर्थ है: अपने मूल को फिर पा लेना।
झेन फकीर कहते हैं, ओरिजिनल फेस, अपने मूल चेहरे को जान लेना। जो तुम जन्मे न थे, तब तुम्हारा था; जब तुम पैदा न हुए थे, तब तुम्हारी जो मुखाकृति थी; उसको पहचान लेना प्रत्याहार है।
'प्राणायाम और प्रत्याहार, नित्य और अनित्य का विवेक-विचार...'और प्रतिपल जानते रहना, सोचते रहना, देखते रहना--क्या सार्थक है, क्या व्यर्थ है। इसे क्षण भर को भी भूलना नहीं। क्योंकि भूलते ही व्यर्थ को पकड़ लेते हो, सार्थक को छोड़ देते हो। मरे चूहे को पकड़ने में देर नहीं लगती; जरा ही भूले कि पकड़ा। होश आया तो छूट जाता है।
ओशो, भज गोविंदम मुढ़मते (आदि शंक्राचार्य) प्रवचन--09

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