Thursday, November 21, 2019

शिव--सूत्र

ऐसा हुआ कि औरंगजेब एक फकीर पर बहुत नाराज था। और एक दिन उसने फकीर को पकड़वा कर महल बुलवा लिया। और लोगों ने कहा था, इस फकीर को नाराज करना तक मुश्किल है।
औरंगजेब ने कहा, देखेंगे। सर्द रात थी—दिल्ली की सर्द रात। महल में राग—रंग चलता रहा और फकीर को नग्न करवाकर यमुना में खड़ा करवा दिया। और औरंगजेब ने कहा कि सुबह पूछेंगे।
रातभर फकीर नग्न बर्फीली नदी में खड़ा रहा। सुबह औरंगजेब ने पूछा, 'कहो, कैसी बात?' फकीर ने कहा, 'कुछ तुम जैसी, कुछ तुमसे अच्छी!
'औरंगजेब ने पूछा, 'मैं समझा नहीं', फकीर ने कहा, 'सपने आते रहे। उनमें मै सम्राट था। महलों में था, राग—रंग चल रहा था। उन सपनों में और तुम्हारे राग—रंग में जो महल में चल रहा था, जरा भी भेद नहीं है। मैंने उतना ही मजा लिया, जितना तुम लिये। तो कुछ तुम जैसी, कुछ तुमसे अच्छी; क्योंकि बीच—बीच में होश आ गया और सपना टूट गया। तुम्हें अभी होश जरा भी नहीं आया।’
रात तुम वही तो पूरा करते हो, जो दिन में चूक जाता है। दिन के अधूरे कृत्य रात में पूरे किये जाते हैं। दिन में जो वासनाएं तुम पूरी न कर पाये, क्योंकि कठिनाइयां हैं। और वासनाएं पूरी करना आसान नहीं है, क्योंकि वासनाएं दुष्‍पूर हैं।
और ऐसी हैं कि उनके पूरे होने का कोई उपाय ही नहीं, उनका स्वभाव ही पूरा होना नहीं है। तुम्हें सारी दुनिया की संपत्ति मिल जाये, तो भी पूरी न होगी।
कहते हैं, सिकंदर को डायोजनीज ने कहा, 'सिकंदर, जिस दिन तू सारी दुनिया जीत लेगा, बड़ी मुश्किल में पड़ेगा। यह काम छोड़ ही दे। जब तक जीता नहीं, तब तक मुश्‍किल में हो, जब जीत लेगा तो और भी मुश्किल में पड़ेगा।’ सिकंदर—कहते हैं—उदास हो गया।
और उसने डायोजनीज से कहा, 'ऐसी बातें मत करो। क्योंकि यह खयाल ही कि सारी दुनिया मैंने जीत ली, मुझे उदास करता है; क्योंकि फिर कोई और दूसरी दुनिया तो जीतने को है नहीं। सारी दुनिया जीतकर भी मन भरेगा नहीं। मन कहेगा—अब क्या? अब क्या जीते? और मन उदास होगा।’
सपने सम्राट भी देखते हैं, भिखमंगे भी देखते हैं। क्योंकि अधूरा जो रह गया, वह सपने में पूरा कर लेना पड़ता है। सपने का एक गुण है। सपना बड़ा दयालु है। सपना तुम पर बड़ी कृपा करता है। अगर तुमने दिन में उपवास किया है, किन्हीं साधु—संन्यासियों के चक्कर में पड़कर और तुम भूखे मरे, तो रात तुम राज—भोज में सम्मिलित हो जाओगे। सपना तुम्हारे साधुओं से ज्यादा दयालु है। वह तुम्हें राज—भोज में बुला लेगा।
बढ़िया से बढ़िया मिष्ठान्न जो तुम्हें कभी नहीं मिले, सुंदर से सुंदर भोजन, तुम कर पाओगे। और उनके स्वाद में और असली भोजन के स्वाद में जरा भी अंतर नहीं है। शायद थोड़ा उनका स्वाद ज्यादा ही है। तुम अगर स्रियों के पीछे दौड़ते रहे और तुम उन्हें नहीं पा सके तो सपने में तुम उन्हें पा लोगे। दुनिया की सुंदरतम स्रियां तुम्हारी हो जायेंगी या सुंदरतम पुरुष तुम्हारे हो जायेंगे।
सपना, तुम्हें द्वार खोल देता है—तुम्हारी सारी वासनाओं को पूरा कर लो। और आदमी अगर साठ साल जीता है, तो बीस साल सोता है। बीस साल जागता है। बीस साल दूसरे कामों में व्यतीत होते हैं। अगर बीस साल सपने में तुम सम्राट रहते हो और कोई आदमी जागकर सम्राट रहता है, तो फर्क क्या है? हिसाब बराबर है।
शायद जागने में जो सम्राट रहता है, वह झंझटों में सम्राट रह भी नहीं पाता; तुम निश्‍चित भाव से सम्राट रहते हो सपनों में।
सपने उसी दिन खोते हैं, जिस दिन कोई नींद में जाग जाता है—तब सपने व्यर्थ हो जाते हैं। क्योंकि नींद में जो जाग गया, अब उसकी कोई वासना न रही। सब वासनाएं मूर्च्छा के हिस्से हैं, बेहोशी के हिस्से हैं।

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