Monday, August 26, 2019

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-04

शिक्षकसमाज ओर क्रांति
मेरे प्रिय आत्मन्!
शिक्षक और समाज के संबंध में कुछ थोड़ी सी बातें जो मुझे दिखाई पड़ती हैंवह मैं आपसे कहूं। शायद जिस भांति आप सोचते रहे होंगे उससे मेरी बात का कोई मेल न हो। यह भी हो सकता है कि शिक्षाशास्त्री जिस तरह की बातें कहता है उस तरह की बातों से मेरा विरोध भी हो। न तो मैं कोई शिक्षाशास्त्री हूं और न ही समाजशास्त्री। इसलिए सौभाग्य है थोड़ा कि मैं शिक्षा और समाज के संबंध में कुछ बुनियादी बातें कह सकता हूं। क्योंकि जो शास्त्र से बंध जाते हैं उनका चिंतन समाप्त हो जाता है। जो शिक्षाशास्त्री हैं उनसे शिक्षा के संबंध में कोई सत्य प्रकट होगाइसकी संभावना अब करीब-करीब समाप्त मान लेनी चाहिए। क्योंकि पांच हजार वर्ष से वे चिंतन करते हैं लेकिन शिक्षा की जो स्थिति हैशिक्षा का जो ढांचा हैउस शिक्षा से पैदा होने वाले मनुष्यों की जो रूप-रेखा है वह इतनी गलतइतनी अस्वस्थ और भ्रांत है कि यह स्वाभाविक है कि शिक्षाशास्त्रियों से निराशा पैदा हो जाए।
समाजशास्त्री भीजो समाज के संबंध में चिंतन करता है वह भी अत्यंत रुग्ण और अस्वस्थ है। अन्यथा मनुष्य-जातिउसका जीवन,उसका विचार बहुत अलग और अन्यथा हो सकते थे। मैं दोनों में से कोई भी नहीं हूं इसलिए कुछ ऐसी बातें संभव हैंआपसे कह सकूं जो सीधी समस्याओं को देखने से पैदा होती हैं।

जिन लोगों के लिए भी शास्त्र महत्वपूर्ण हो जाते हैं उनके लिए समाधान महत्वपूर्ण हो जाते हैं और समस्याएं कम महत्व की हो जाती हैं। मुझे चूंकि कोई भी पता नहीं शिक्षाशास्त्र का इसलिए मैं सीधी समस्याओं पर आपसे बात करना चाहूंगा।
सबसे पहली बात और जिस आधार पर आगे मैं आपसे कुछ कहूंवह यह है कि शिक्षक का और समाज का संबंध अब तक अत्यंत खतरनाक सिद्ध हुआ है। संबंध क्या है शिक्षक और समाज के बीच आज तकसंबंध यह है शिक्षक गुलाम हैसमाज मालिक है। और शिक्षक से काम समाज कौन सा लेता हैशिक्षक से समाज काम यह लेता है कि उसकी पुरानी ईष्र्याएंउसके पुराने द्वेष,उसके पुराने विचार वह सब जो हजारों वर्ष की लाशें हैं मनुष्य के मन परशिक्षक नये बच्चों के मन में उनको प्रविष्ट करा दे। मरे हुए लोगमरते जाने वाले लोग जो वसीयत छोड़ गए हैंचाहे वह ठीक हो चाहे गलतउसे वह नये बच्चों के मन में प्रवेश करा दे। समाज शिक्षक से यह काम लेता रहा है और शिक्षक इस काम को करता रहा हैयह आश्चर्य की बात है! इसका अर्थ यह हुआ कि शिक्षक के ऊपर बहुत बड़ीबहुत बड़ी लांछना है।
बहुत बड़ी लांछना यह है कि हर सदी जिन बीमारियों से पीड़ित होती है उन बीमारियों को शिक्षक आगे आने वाली सदी में संक्रमित कर देता है। समाज चाहता है यह। इसलिए चाहता है कि समाज का ढांचासमाज के ढांचे से जुड़ गए स्वार्थसमाज के ढांचे के साथ जुड़ गए अंधविश्वासकोई भी मरना नहीं चाहते। कोई भी समाप्त नहीं होना चाहते। इस कारण समाज शिक्षक का आदर भी करता हैआदर करने की प्रवृत्ति दिखलाता है। क्योंकि बिना शिक्षक की खुशामद किएबिना शिक्षक को आदर दिए शिक्षक से कोई काम लेना असंभव है। इसलिए कहा जाता है कि शिक्षक जो है वह गुरु हैआदरणीय हैउसकी बात मानने योग्य हैउसका सम्मान किया जाने योग्य है। क्योंक्योंकि जो समाज अपने बच्चों में अपने मन की सारी धारणाओं को छोड़ जाना चाहता हैइसके सिवाय उसे कोई मार्ग नहीं है। जैसे हिंदू बाप अपने बेटे को भी हिंदू बना कर ही मरना चाहता हैमुसलमान बाप अपने बेटे को मुसलमान बना कर मरना चाहता है। हिंदू बाप का मुसलमान से जो झगड़ा था वह भी अपने बच्चे को दे जाना चाहता है। यह कौन देगायह कौन संक्रमित करेगायह शिक्षक करेगा। पुरानी पीढ़ी की जो-जो अंधश्रद्धाएं हैं वे सारी अंधश्रद्धाएं पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी पर थोप जाना चाहती है। अपने शास्त्रअपने गुरु सब थोप जाना चाहती है। यह कौन करेगा?...यह काम वह शिक्षक से लेती है और इसका परिणाम क्या होगा?
इसका परिणाम यह होता है कि दुनिया में भौतिक समृद्धि तो विकसित होती जाती है लेकिन मानसिक शक्ति विकसित नहीं हो रही है। मानसिक शक्ति विकसित हो ही नहीं सकती जब तक कि हम अतीत के भार और विचार से बच्चों को मुक्त न करें। एक छोटे से बच्चे के मस्तिष्क पर पांच-दस हजार साल के संस्कारों का भार है। उस भार के नीचे उसके प्राण दबे जाते हैं। उस भार में उसकी चेतना की ज्योतिउसके खुद का व्यक्तित्वनिजी व्यक्तित्व उठना असंभव है।
तो दुनिया में भौतिक समृद्धि बढ़ती हैक्योंकि भौतिक समृद्धि को हम जहां हमारे मां-बाप छोड़ते हैंउससे आगे ले जाते हैं। लेकिन मानसिक समृद्धि नहीं बढ़ती है क्योंकि मानसिक समृद्धि में हम अपने मां-बाप से आगे जाने को तैयार नहीं। आपके पिता जो मकान बना गए थेलड़का उसको दो मंजला बनाने में संकोच अनुभव नहीं करताबल्कि खुश होता है। बल्कि बाप भी खुश होगा कि मेरे लड़के ने मेरे मकान को दो मंजिल कियातीन मंजल किया। लेकिन महावीरबुद्धराम और कृष्ण जो वसीयत छोड़ गए हैं उनके मानने वाले इस बात से बहुत मुश्किल में पड़ जाएंगे कि किसी व्यक्ति ने गीता के आगे विचार कियाकि गीता के एक मंजिले झोपड़े को दो मंजिल का मकान बनाया है। नहींमन के तल पर जो मकान बाप छोड़ गए हैं उसके भीतर ही रहना जरूरी हैउससे बड़ा मकान नहीं बनाया जा सकता है। और इस बात की हजारों साल से चेष्टा चलती है कि कोई बच्चा बाप के आगे न निकल जाए।
इसकी कई तरकीबें हैंकई व्यवस्थाएं हैं। इसीलिए दुनिया में समृद्धि बढ़ती है--भौतिकलेकिन मानसिक दीनता बढ़ती चली जाती है। और जब मन छोटा हो और भौतिक समृद्धि ज्यादा हो तो खतरे पैदा हो जाते हैं। जिस भांति हम भौतिक जगत में अपने मां-बाप से आगे बढ़ते हैंजरूरी है कि बच्चे मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी अपने मां-बाप को पीछे छोड़ दें। इसमें मां-बाप का अपमान नहींबल्कि इसी में सम्मान है। ठीक-ठीक पिता वही हैठीक-ठीक पिता का प्रेम वही है कि वह चाहे कि उसका बच्चा हर दृष्टि से उसे पीछे छोड़ दे।...हर दृष्टि से उसे पीछे छोड़ दे!
लेकिन अगर किसी भी तल पर बाप की यह इच्छा है कि बच्चा उसके आगे न निकल जाए तो यह इच्छा खतरनाक है और शिक्षक अब तक इसमें सहयोगी रहा है। अब तक सहयोग रहा है उसका। इसमें हम अपमान समझेंगे कि अगर हम कृष्ण से आगे विचार करें या महावीर से आगे विचार करें या मोहम्मद से आगे विचार करें--इसमें मोहम्मद का अपमान हैमहावीर का अपमान है,कितने पागलपन का खयाल है! और इस कारण सारी शिक्षा अतीत की ओर उन्मुख हैजब कि शिक्षा भविष्य की ओर उन्मुख होनी चाहिए। विकासशील कोई भी सृजनात्मक प्रक्रिया भविष्य की ओर उत्सुक होती हैअतीत की ओर नहीं।
हमारी सारी शिक्षा अतीत की ओर उत्सुक है। हमारे सारे सिद्धांतहमारी सारी धारणाएंहमारे सारे आदर्श अतीत से लिए जाते हैं। अतीत का मतलब है जो मर गयाजो बीत गया। हजार-हजार वर्ष जिसे बीते हो गएवह सारी धारणाएं हम उस बच्चे के मन पर थोपना चाहते हैं। न केवल थोपना चाहते हैंबल्कि उसी बच्चे को हम आदर्श कहेंगे जो उन धारणाओं के अनुकूल अपने को सिद्ध कर लेता है। यह कौन करता रहा हैयह काम शिक्षक से लिया जाता रहा है और इस भांति शिक्षक का शोषण समाज के ठेकेदारों ने भी किया हैधर्म के ठेकेदारों ने भी किया है और राज्य के ठेकेदारों ने भी किया हैऔर शिक्षक को यह भुलावा दिया गया है कि वह ज्ञान का प्रसारक है।
वह ज्ञान का प्रसारक नहीं है। जैसे उसकी स्थिति है वह उस ज्ञान का स्थापितस्थायी रखने वाला है। जो उत्पन्न हो चुका है,और जो हो सकता है उसमें बाधा देने वाला है। वह हमेशा अतीत के घेरे से बाहर नहीं उठने देना चाहता है। और इसका परिणाम यह होता है कि हजार-हजार साल तक न मालूम किस-किस प्रकार की नासमझियांन मालूम किस-किस तरह के अज्ञान चलते चले जाते हैं। उनको मरने नहीं दिया जाताउनको मरने का मौका नहीं दिया जाता। राजनीतिज्ञ भी यह समझ गया हैइसलिए शिक्षक का शोषण राजनीतिज्ञ भी करता है। और सबसे आश्चर्य की बात है कि इसका शिक्षक को कोई बोध नहीं है कि उसका शोषण होता है सेवा के नाम परकि वह समाज की सेवा करता हैउसका शोषण होता है--इसका शिक्षक को कोई बोध नहीं है! किस-किस तरह का शोषण होता है?
अभी मैं गयाअभी कुछ ही दिन पहले शिक्षकों की एक बड़ी विराट सभा में बोलने। शिक्षक-दिवस था। तो मैंने उनसे कहा कि एक शिक्षक यदि राष्ट्रपति हो जाए तो इसमें शिक्षक का सम्मान क्या हैइसमें कौन से शिक्षक का सम्मान हैमेरी समझ में आए,एक राष्ट्रपति शिक्षक हो जाए तब तो शिक्षक का सम्मान समझ में आता है लेकिन एक शिक्षक राष्ट्रपति हो जाए इसमें शिक्षक का सम्मान कौन सा है! एक राष्ट्रपति शिक्षक हो जाए और कह दे कि यह व्यर्थ है और मैं शिक्षक होना चाहता हूं और शिक्षक होना आनंद हैतब तो हम समझेंगे कि शिक्षक का सम्मान हुआ। लेकिन एक शिक्षक राष्ट्रपति हो जाएइसमें शिक्षक का सम्मान नहीं है,राजनीतिज्ञ का सम्मान है। इसमें राजनेता का सम्मान है। और जब एक शिक्षक सम्मानित होता हो राष्ट्रपति होकर तो फिर बाकी शिक्षक भी अगर हेडमास्टर होना चाहेंस्कूल इंस्पेक्टर होना चाहेंएजुकेशन के मिनिस्टर होना चाहेंतो कोई गलती है?
सम्मान तो वहां है जहां पद हैऔर पद वहां है जहां राज्य है। लेकिन सारा ढांचा हमारे चिंतन का ऐसा है कि सब पीछे है,और सबके ऊपर राज्य हैसबके ऊपर राजनीति है। राजनीतिज्ञ जाने-अनजाने शिक्षक के द्वारा अपनी विचार-स्थिति कोअपनी धारणाओं को बच्चों में प्रवेश करवाता रहता है। धार्मिक भी करता रहा है--यही! धर्म-शिक्षा के नाम पर यही चलता रहा है...कि हर धर्म यह कोशिश करता हैबच्चों के मन में अपनी धारणाओं को प्रवेश करा देचाहे वे सत्य होंचाहे असत्य हों। और उस उम्र में प्रवेश करवा दे जब कि बच्चे में कोई सोच-विचार नहीं होता है। इससे घातक अपराध मनुष्य-जाति में कोई दूसरा नहीं है और न हो सकता है। एक अबोध और अनजान बालक के मन में यह भाव पैदा कर देना कि कुरान में जो है वह सत्य है या गीता में जो है वह सत्य है या भगवान हैं तो मोहम्मद हैं या भगवान हैं तो महावीर हैं या कृष्ण हैं...ये सारी बातें एक अबोधअनजाननिर्दोष बच्चे के मन में प्रविष्ट करा देना...! इससे बड़ा कोई घातक अपराध नहीं हो सकता। लेकिन इसी भांति राजनीतिज्ञ भी कोशिश करता है।
अभी हिंदुस्तान का मामला था। आजादी की लड़ाई थी तो हिंदुस्तान के राजनीतिज्ञ कहते थेशिक्षक और विद्यार्थी दोनों राजनीति में भाग लें क्योंकि देश की आजादी का सवाल है। फिर वे ही राजनीतिज्ञ हुकूमत में आ गएसत्ता में आ गए तो वे कहते हैंशिक्षक और विद्यार्थी राजनीति से दूर रहें। कम्युनिस्ट हैंसोशलिस्ट हैंवे विद्यार्थी और शिक्षक से कहते हैं कि नहींदूर रहने की कोई जरूरत नहीं हैतुम्हें राजनीति में भाग लेना चाहिए। शिक्षक और विद्यार्थी राजनीति में भाग लें। कल कम्युनिस्ट आ जाएं हुकूमत मेंवे कहेंगे कि अब तुम्हें इस राजनीति में भाग लेने की कोई भी जरूरत नहीं! क्यों! जो जिस राजनीतिज्ञ के हित में है वही सत्य हो जाता हैजब जिस मौके पर...और शिक्षक और विद्यार्थी को वही सत्य हैयह समझाने की कोशिश की जाती है।
मेरी दृष्टि में कोई भी व्यक्ति ठीक अर्थों में शिक्षक तभी हो सकता है जब उसमें विद्रोह की एक अत्यंत ज्वलंत अग्नि हो। जिस शिक्षक के भीतर विद्रोह की अग्नि नहीं है वह केवल किसी न किसी निहितस्वार्थ काचाहे समाजचाहे धर्मचाहे राजनीति,उसका एजेंट होगा। शिक्षक के भीतर एक ज्वलंत अग्नि होनी चाहिए विद्रोह कीचिंतन कीसोचने की। लेकिन क्या हममें सोचने की अग्नि है और अगर नहीं है तो आप भी एक दुकानदार हैं।
शिक्षक होना बड़ी और बात है। शिक्षक होने का मतलब क्या हैक्या हम सोचते हैं--आप बच्चों को सिखाते होंगेसारी दुनिया में सिखाया जाता है बच्चों कोबच्चों को सिखाया जाता हैप्रेम करो! लेकिन कभी आपने विचार किया है कि आपकी पूरी शिक्षा की व्यवस्था प्रेम पर नहींप्रतियोगिता पर आधारित है। किताब में सिखाते हैं प्रेम करो और आप की पूरी व्यवस्थापूरा इंतजाम प्रतियोगिता का है।
जहां प्रतियोगिता है वहां प्रेम कैसे हो सकता है। जहां काम्पिटीशन हैप्रतिस्पर्धा हैवहां प्रेम कैसे हो सकता है। प्रतिस्पर्धा तो ईष्र्या का रूप हैजलन का रूप है। पूरी व्यवस्था तो जलन सिखाती है। एक बच्चा प्रथम आ जाता है तो दूसरे बच्चों से कहते हैं कि देखो तुम पीछे रह गए और यह पहले आ गया। आप क्या सिखा रहे हैंआप सिखा रहे हैं कि इससे ईष्र्या करोप्रतिस्पर्धा करो,इसको पीछे करोतुम आगे आओ। आप क्या सिखा रहे हैंआप अहंकार सिखा रहे हैं कि जो आगे है वह बड़ा है जो पीछे है वह छोटा है। लेकिन किताबों में आप कह रहे हैं कि विनीत बनो और किताबों में आप समझा रहे हैं कि प्रेम करोऔर आपकी पूरी व्यवस्था सिखा रही है कि घृणा करोईष्र्या करोआगे निकलोदूसरे को पीछे हटाओ और आपकी पूरी व्यवस्था उनको पुरस्कृत कर रही है। जो आगे आ रहे हैं उनको गोल्ड मेडल दे रही हैउनको सर्टिफिकेट दे रही हैउनके गलों में मालाएं पहना रही हैउनके फोटो छाप रही हैऔर जो पीछे खड़े हैं उनको अपमानित कर रही है।
तो जब आप पीछे खड़े आदमी को अपमानित करते हैं तो क्या आप उसके अहंकार को चोट नहीं पहुंचाते कि वह आगे हो जाएऔर जब आगे खड़े आदमी को आप सम्मानित करते हैं तो क्या आप उसके अहंकार को प्रबल नहीं करते हैंक्या आप उसके अहंकार को नहीं फुसलाते और बड़ा करते हैंऔर जब ये बच्चे इस भांति अहंकार मेंईष्र्या मेंप्रतिस्पर्धा में पाले जाते हैं तो यह कैसे प्रेम कर सकते हैं। प्रेम का हमेशा मतलब होता है कि जिसे हम प्रेम करते हैं उसे आगे जाने दें। प्रेम का हमेशा मतलब हैपीछे खड़े हो जाना।
एक छोटी सी कहानी कहूंउससे खयाल में आए।
तीन सूफी फकीरों को फांसी दी जा रही थी और दुनिया में हमेशा धार्मिक आदमी संतों के खिलाफ रहे हैं। तो धार्मिक लोग उन फकीरों को फांसी दे रहे थे। तीन फकीर बैठे हुए थे कतार में। जल्लाद एक-एक का नाम बुलाएगा और उनको काट देगा। उसने चिल्लाया कि नूरी कौन हैउठ कर आ जाए। लेकिन नूरी नाम का आदमी तो नहीं उठाएक दूसरा युवक उठा और वह बोला कि मैं तैयार हूंमुझे काट दें। उसने कहाः लेकिन तेरा तो नाम यह नहीं है। इतनी मरने की क्या जल्दी हैउसने कहाः मैंने प्रेम किया और जाना कि जब मरना हो तो आगे हो जाओ और जब जीना हो तो पीछे हो जाओ। मेरा मित्र मरेउसके पहले मुझे मर जाना चाहिए। और अगर जीने का सवाल हो तो मेरा मित्र जीएउसके पीछे मुझे जीना चाहिए।
प्रेम तो यही कहता हैलेकिन प्रतियोगिता क्या कहती हैप्रतियोगिता कहती हैमरने वाले के पीछे हो जाना और जीने वाले के आगे हो जाना। और हमारी शिक्षा क्या सिखाती हैप्रेम सिखाती है या प्रतियोगिता सिखाती हैऔर जब सारी दुनिया में प्रतियोगिता सिखाई जाती हो और बच्चों के दिमाग में काम्पिटीशन और एंबीशन का जहर भरा जाता हो तो क्या दुनिया अच्छी हो सकती हैजब हर बच्चा हर दूसरे बच्चे से आगे निकलने के लिए प्रयत्नशील होऔर जब हर बच्चा हर बच्चे को पीछे छोड़ने के लिए उत्सुक होबीस साल की शिक्षा के बाद जिंदगी में वह क्या करेगायही करेगाजो सीखेगा वही करेगा।
हर आदमी हर दूसरे आदमी को खींच रहा है कि पीछे आ जाओ। नीचे के चपरासी से लेकर ऊपर के राष्ट्रपति तक हर आदमी एक-दूसरे को खींच रहा है कि पीछे आ जाओ। और जब कोई खींचते-खींचते चपरासी राष्ट्रपति हो जाता है तो हम कहते हैंबड़ी गौरव की बात हो गई। हालांकि किसी को पीछे करके आगे होने से बड़ा हीनता काहिंसा का कोई काम नहीं है। लेकिन यह वायलेंस हम सिखा रहे हैंयह हिंसा हम सिखा रहे हैं और इसको हम कहते हैंयह शिक्षा है। अगर इस शिक्षा पर आधारित दुनिया में युद्ध होते हों तो आश्चर्य कैसा! अगर इस शिक्षा पर आधारित दुनिया में रोज लड़ाई होती होरोज हत्या होती हो तो आश्चर्य कैसा! अगर इस शिक्षा पर आधारित दुनिया में झोपड़ों के करीब बड़े महल खड़े होते हों और उन झोपड़ों में मरते लोगों के करीब भी लोग अपने महलों में खुश रहते हों तो आश्चर्य कैसा! इस दुनिया में भूखे लोग हों और ऐसे लोग हों जिनके पास इतना है कि क्या करेंउनकी समझ में नहीं आता। यह इस शिक्षा की बदौलत हैयह इस शिक्षा का परिणाम है। यह दुनिया इस शिक्षा से पैदा हो रही है और शिक्षक इसके लिए जिम्मेवार हैऔर शिक्षक की नासमझी इसके लिए जिम्मेवार है। वह शोषण का हथियार बना हुआ है। वह हजार तरह के स्वार्थों का हथियार बना हुआ हैइस नाम पर कि वह शिक्षा दे रहा हैबच्चों को शिक्षा दे रहा है!
अगर यही शिक्षा है तो भगवान करे कि सारी शिक्षा बंद हो जाए तो भी आदमी इससे बेहतर हो सकता है। जंगली आदमी शिक्षित आदमी से बेहतर है। उसमें ज्यादा प्रेम है और कम प्रतिस्पर्धा हैउसमें ज्यादा हृदय है और कम मस्तिष्क हैलेकिन इससे बेहतर वह आदमी है। लेकिन हम इसको शिक्षा कह रहे हैं! और हम करीब-करीब जिन-जिन बातों को कहते हैं कि तुम यह करना,उनसे उलटी बातें हमपूरा सरंजाम हमाराउलटी बातें सिखाता है!
आप क्या कहते हैंआप सिखाते हैं उदारतासहानुभूति। लेकिन प्रतियोगी मनकाम्पिटिटिव माइंड कैसे उदार हो सकता है?कैसे सहानुभूतिपूर्ण हो सकता हैअगर प्रतियोगी मन सहानुभूतिपूर्ण हो तो प्रतियोगिता कैसे चलेगीप्रतियोगी मन कठोर होगा,हिंसक होगाअनुदार होगा--होना ही पड़ेगा उसे। और हमारी व्यवस्था ऐसी है कि हमें पता भी नहीं चलेगाहमें खयाल में भी नहीं आएगा कि यह हिंसक आदमी है जो सारी भीड़ को हटा कर आगे जा रहा है। यह क्या हैयह हिंसक आदमी है और हम इसे सिखाए जा रहे हैंहम इसे तैयार किए जा रहे हैं।
फैक्ट्रियां बढ़ती जा रही हैं इस तरह की शिक्षा कीउनको हम स्कूल कहते हैंविद्यालय कहते हैंयह सरासर झूठ है। ये सब फैक्ट्रियां हैं जिनमें एक बीमार आदमी तैयार किया जा रहा है और वह बीमार आदमी सारी दुनिया को गड्ढे में लिए जा रहा है। हिंसा बढ़ती जाती हैप्रतिस्पर्धा बढ़ती जाती है। एक-दूसरे के गले पर एक-दूसरे का हाथ है। आप यहां बैठे हैंकहेंगे कि हमारा किसके गले पर हाथ है। लेकिन जरा गौर से देखेंहर आदमी का हाथ हर दूसरे आदमी के गले पर है और एक-एक गले पर हजार-हजार हाथ हैं और हर आदमी का हाथ दूसरे की जेब में है और एक-एक जेब में हजार-हजार हाथ हैं और यह बढ़ता जा रहा है। यह कहां जाएगा,यह कहां टूटेगायह कब तक चल सकता हैयह एटम और हाइड्रोजन बम कहां से पैदा हो रहे हैं?--प्रतियोगिता सेप्रतिस्पर्धा से! वह चाहे प्रतिस्पर्धा दो आदमियों की होचाहे दो राष्ट्रों कीकोई फर्क थोड़े ही है। वह रूस की हो या अमरीका कीकोई फर्क थोड़े ही है।
प्रतिस्पर्धा हैआगे होना है। अगर तुम एटम बम बनाते हो तो हम हाइड्रोजन बम बनाते हैंतुम हाइड्रोजन बनाते हो तो हम कुछ और बनाएंगेसुपर हाइड्रोजन बम बनाएंगे। लेकिन पीछे हम नहीं रह सकते। पीछे रहना हमें कभी सिखाया नहीं गया है। हमें आगे होना है। अगर तुम दस मारते होे हम बीस मारेंगे। अगर तुम एक मुल्क मिटाते हो तो हम दो मिटा देंगे। यानी हम इस तक के लिए राजी हो सकते हैं कि हम सबको मिटाने के लिए राजी हो सकते हैंक्योंकि हम पीछे नहीं रह सकते। यह है और यह कौन पैदा कर रहा है! यह कहां से सारी बात आ रही है! यह शिक्षा से सारी बात आ रही है।
लेकिन हम अंधे हैं और हम यह देखते नहीं कि मामला क्या है। बच्चों को हम क्या सिखाते हैंउनको सिखाते हैंलोभी मत बनोभयभीत मत बनोलेकिन करते क्या हैंहम पूरे वक्त लोभ सिखाते हैंपूरे वक्त भय सिखाते हैं। पुराने जमाने में नरक के भय थेस्वर्ग के पुरस्कार का प्रलोभन था। वह हजारों साल तक सिखाया गया। पूरे प्राण ढीले कर दिए गए आदमी के। भय और लोभ के सिवाय उसमें कुछ भी नहीं बचा। भय है कि कहीं नरक न चला जाऊं और लोभ लगा है कि किसी भांति स्वर्ग पहुंच जाऊं। हम क्या करते हैंजहां भी दंड और पुरस्कार हैवहां भय है और वहां लोभ है। लेकिन बच्चों को हम कैसे सिखाते हैंसिखाने का रास्ता क्या हैसिखाने का रास्ता है या तो भय या लोभ। या तो मारो और सिखाओया फिर प्रलोभन दो कि हम यह-यह देंगे,गोल्ड मेडल देंगेइज्जत देंगेनौकरी देंगेसमाज में स्थान मिलेगाऊंचा पद देंगेनवाब बना देंगेे।
 मैं जब पढ़ता था तो वे कहते थे कि पढ़ोगे लिखोगे होगे नवाबतुमको नवाब बना देंगेतुमको तहसीलदार बनाएंगे। तुम राष्ट्रपति हो जाओगे। ये प्रलोभन हैं और ये प्रलोभन हम छोटे-छोटे बच्चों के मन में जगाते हैं। हमने कभी उनको सिखाया क्या कि तुम ऐसा जीवन बसर करना कि तुम शांत रहोआनंदित रहो! नहीं। हमने सिखायातुम ऐसा जीवन बसर करना कि तुम ऊंची से ऊंची कुर्सी पर पहुंच जाओ। तुम्हारी तनख्वाह बड़ी से बड़ी हो जाएतुम्हारे कपड़े अच्छे से अच्छे हो जाएंतुम्हारा मकान ऊंचे से ऊंचा हो जाएहमने यह सिखाया है। हमने हमेशा यह सिखाया है कि तुम लोभ को आगे से आगे खींचनाक्योंकि लोभ ही सफलता है। और जो असफल है उसके लिए कोई स्थान है?
इस पूरी शिक्षा में असफल के लिए जब कोई स्थान नहीं हैअसफल के प्रति कोई जगह नहीं है और केवल सफलता की धुन और ज्वर हम पैदा करते हैं तो फिर स्वाभाविक है कि सारी दुनिया में जो सफल होना चाहता है वह जो बन सकता हैकरता है। क्योंकि सफलता आखिर में सब छिपा देती है। एक आदमी किस भांति चपरासी से राष्ट्रपति बनता है! एक दफा राष्ट्रपति बन जाए तो फिर कुछ पता नहीं चलता कि वह कैसे राष्ट्रपति बनाकौन सी तिकड़म सेकौन सी शरारत सेकौन सी बेईमानी सेकौन से झूठ सेकिस भांति से राष्ट्रपति बनाकोई जरूरत अब पूछने की नहीं है! न दुनिया में कभी कोई पूछेगान पूछने का कोई सवाल उठेगा। एक दफा सफलता आ जाए तो सब पाप छिप जाते हैं और समाप्त हो जाते हैं। सफलता एकमात्र सूत्र है। तो जब सफलता एकमात्र सूत्र है तो मैं झूठ बोल कर क्यों न सफल हो जाऊंबेईमानी करके क्यों न सफल हो जाऊं! अगर सत्य बोलता हूंअसफल होता हूंतो क्या करूं?
तो हम एक तरफ सफलता को केंद्र बनाए हैं और जब झूठ बढ़ता हैबेईमानी बढ़ती है तो हम परेशान होते हैं कि यह क्या मामला है। जब तक सफलतासक्सेस एकमात्र केंद्र हैसारी कसौटी का एकमात्र मापदंड हैतब तक दुनिया में झूठ रहेगाबेईमानी रहेगीचोरी रहेगी। यह नहीं हट सकतीक्योंकि अगर चोरी से सफलता मिलती है तो क्या किया जाएअगर बेईमानी से सफलता मिलती है तो क्या किया जाएबेईमानी से बचा जाए कि सफलता छोड़ी जाएक्या किया जाएजब सफलता एकमात्र माप है,एकमात्र मूल्य हैएकमात्र वैल्यू है कि वह आदमी महान है जो सफल हो गया तो फिर बाकी सब बातें अपने आप गौण हो जाती हैं। रोते हैं हमचिल्लाते हैं कि बेईमानी बढ़ रही हैयह हो रहा है। यह सब बढ़ेगीयह बढ़नी चाहिए। आप जो सिखा रहे हैं उसका फल है यहऔर पांच हजार साल से जो सिखा रहे हैं उसका फल है।
सफलता की वैल्यू जानी चाहिएसफलता कोई वैल्यू नहीं हैसफलता कोई मूल्य नहीं है। सफल आदमी कोई बड़े सम्मान की बात नहीं है। सफल नहीं सुफल होना चाहिए आदमी--सफल नहीं सुफल! एक आदमी बुरे काम में सफल हो जाएइससे बेहतर है कि एक आदमी भले काम में असफल हो जाए। सम्मान काम से होना चाहिएसफलता से नहीं। लेकिन सफलता मूल्य है और सारा साराइंतजाम उसके केंद्र पर घूम रहा है। सिखा रहे हैंकुछ सत्य सिखा रहे हैं?
एजुकेशन कमीशन बैठा था अभी। उसके चेयरमैन ने मुझसे कहा कि हम अपने बच्चों को कहते हैं कि तुम सत्य बोलो। सब तरह समझाते हैंलेकिन फिर भी कभी-कभी झूठ बोलते हैं! मैंने उनसे कहा कि क्या आप पसंद करेंगे कि आपका लड़का सड़क पर भंगी हो जाएबुहारी लगाएया एक स्कूल में चपरासी हो जाएपसंद करेंगेया कि आपका दिल है कि लड़का भी आपकी भांति एजुकेशन कमीशन का चेयरमैन हो। हिंदुस्तान के बाहर एंबेसेडर होधीरे-धीरे चढ़े सीढ़ियां!...और ऊपर आकाश में बैठ जाएआखिर में भगवान हो जाए! क्या चाहते हैंक्या आप राजी हैं इस बात के लिए कि आपका लड़का सड़क पर बुहारी लगाएतो आपको कोई तकलीफ न हो...! उन्होंने कहा कि नहींतकलीफ तो होगी! तो मैंने कहा अगर तकलीफ होगी तो फिर आप लड़के से चाहते नहीं हैं कि वह सत्य होईमानदार हो।
जब तक चपरासी अपमानित है और राष्ट्रपति सम्मानित है तब तक दुनिया में ईमानदारी नहीं हो सकती क्योंकि चपरासी कैसे बैठा रहे चपरासी की जगह परऔर जिंदगी इतनी बड़ी नहीं है कि सत्य का सहारा लिए बैठा रहे। और जब असत्य सफलता लाता हो तो कौन पागल होगा उसे छोड़ दे! और न केवल आप मानते हैं बल्कि मामला कुछ ऐसा है कि आपने जिस भगवान को बनाया हुआ हैजिस स्वर्ग कोवह भी इन सफल लोगों को मानता है। चपरासी मरता है तो नरक ही जाने की संभावना है। राष्ट्रपति कभी नरक नहीं जातेवे सीधे स्वर्ग चले जाते हैं। वहां भी सिक्के यही लगा कर रखे हुए हैंवहां भी जो सफल है वही!--तो फिर क्या होगा?
सफलता का केंद्र खत्म करना होगा। अगर बच्चों से आपको प्रेम है और मनुष्य-जाति के लिए आप कुछ करना चाहते हैं तो बच्चों के लिए सफलता के केंद्र को हटाइएसुफलता के केंद्र को पैदा करिए। अगर मनुष्य-जाति के लिए कोई भी आपके हृदय में प्रेम है और आप सच में चाहते हैं कि एक नई दुनियाएक नई संस्कृति और नया आदमी पैदा हो जाए तो यह सारी पुरानी बेवकूफी छोड़नी पड़ेगीजलानी पड़ेगीनष्ट करनी पड़ेगी और विचार करना पड़ेगा कि क्या विद्रोह होकैसे हो सकता है इसके भीतर से। यह सब गलत है इसलिए गलत आदमी पैदा होता है।
शिक्षक बुनियादी रूप से इस जगत में सबसे बड़ा विद्रोही व्यक्ति होना चाहिए। तो वहतो वह पीढ़ियों को आगे ले जाएगा। और शिक्षक सबसे बड़ा दकियानूस हैसबसे बड़ा ट्रेडिशनलिस्ट वही हैवही दोहराए जाता है पुराने कचरे को। क्रांति शिक्षक में होती नहीं है। आपने कोई सुना है कि शिक्षक कोई क्रांतिपूर्ण हो। शिक्षक सबसे ज्यादा दकियानूससबसे ज्यादा आर्थाडाक्स हैऔर इसलिए शिक्षक सबसे खतरनाक है। समाज उससे हित नहीं पाताअहित पाता है। शिक्षक को होना चाहिए विद्रोही--कौन सा विद्रोह हैमकान में आग लगा दें आपया कुछ और कर दें या जाकर ट्रेनें उलट दें या बसों में आग लगा दें। उसको नहीं कह रहा हूंकोई गलती से वैसा न समझ ले। मैं यह कह रहा हूं कि हमारे जो मूल्य हैंहमारी जो वैल्यूज हैं--उनके बाबत विद्रोह का रुखविचार का रुख होना चाहिए कि हम विचार करें कि यह मामला क्या है!
जब आप एक बच्चे को कहते हैं कि तुम गधे होतुम नासमझ होतुम बुद्धिहीन होदेखो उस दूसरे कोवह कितना आगे है! तब आप विचार करेंतब आप विचार करें कि यह कितने दूर तक ठीक है और कितने दूर तक सच है! क्या दुनिया में दो आदमी एक जैसे हो सकते हैंक्या यह संभव है कि जिसको आप गधा कह रहे हैं कि वैसा हो जाए जैसा कि जो आगे खड़ा है। क्या यह आज तक संभव हुआ हैहर आदमी जैसा हैअपने जैसा हैदूसरे आदमी से कंपेरिजन का कोई सवाल ही नहीं। किसी दूसरे आदमी से उसकी कोई कंपेरिजन नहींकोई तुलना नहीं है।
एक छोटा कंकड़ हैवह छोटा कंकड़ हैएक बड़ा कंकड़ है वह बड़ा कंकड़ है! एक छोटा पौधा हैवह छोटा हैएक बड़ा पौधा हैवह बड़ा पौधा है! एक घास का फूल हैवह घास का फूल हैएक गुलाब का फूल हैवह गुलाब का फूल है! प्रकृति का जहां तक संबंध हैघास के फूल पर प्रकृति नाराज नहीं है और गुलाब के फूल पर प्रसन्न नहीं है। घास के फूल को भी प्राण देती है उतनी ही खुशी से जितने गुलाब के फूल को देती है। और मनुष्य को हटा दें तो घास के फूल और गुलाब के फूल में कौन छोटा हैकौन बड़ा है--है कोई छोटा और बड़ा! घास का तिनका और बड़ा भारी चीड़ का दरख्त...तो यह महान है और यह घास का तिनका छोटा हैतो परमात्मा कभी का घास के तिनके को समाप्त कर देताचीड़-चीड़ के दरख्त रह जाते दुनिया में। नहींलेकिन आदमी की वैल्यूज गलत हैं।
यह आप स्मरण रखें कि इस संबंध में मैं आपसे कुछ गहरी बात कहने का विचार रखता हूं। वह यह कि जब तक दुनिया में हम एक आदमी को दूसरे आदमी से कम्पेयर करेंगेतुलना करेंगे तब तक हम एक गलत रास्ते पर चले जाएंगे। वह गलत रास्ता यह होगा कि हम हर आदमी में दूसरे आदमी जैसा बनने की इच्छा पैदा करते हैंजब कि कोई आदमी किसी दूसरे जैसा न बना है और न बन सकता है।
राम को मरे कितने दिन हो गएया क्राइस्ट को मरे कितने दिन हो गएदूसरा क्राइस्ट क्यों नहीं बन पाता और हजारों-हजारों क्रिश्चिएन कोशिश में तो चैबीस घंटे लगे हैं कि क्राइस्ट बन जाएं। और हजारों हिंदु राम बनने की कोशिश में हैंहजारों जैन,बुद्धमहावीर बनने की कोशिश में लगे हैंबनते क्यों नहीं एकाधएकाध दूसरा क्राइस्ट और दूसरा महावीर पैदा क्यों नहीं होता?क्या इससे आंख नहीं खुल सकती आपकीमैं रामलीला के रामों की बात नहीं कह रहा हूंजो रामलीला में बनते हैं राम। न आप समझ लें कि उनकी चर्चा कर रहा हूंकई लोग राम बन जाते हैं। वैसे तो कई लोग बन जाते हैंकई लोग बुद्ध जैसे कपड़े लपेट लेते हैं और बुद्ध बन जाते हैं। कोई महावीर जैसा कपड़ा लपेट लेता है या नंगा हो जाता है और महावीर बन जाता है। उनकी बात नहीं कर रहा। वे सब रामलीला के राम हैंउनको छोड़ दें। लेकिन राम कोई दूसरा पैदा होता है?
यह आपको जिंदगी में भी पता चलता है कि ठीक एक आदमी जैसा दूसरा आदमी कहीं हो सकता हैएक कंकड़ जैसा दूसरा कंकड़ भी पूरी पृथ्वी पर खोजना कठिन हैएक जड़ कंकड़ जैसा--यहां हर चीज यूनिक हैहर चीज अद्वितीय है। और जब तक हम प्रत्येक की अद्वितीय प्रतिभा को सम्मान नहीं देंगे तब तक दुनिया में प्रतियोगिता रहेगीप्रतिस्पर्धा रहेगीतब तक दुनिया में मार-काट रहेगीतब तक दुनिया में हिंसा रहेगीतब तक दुनिया में सब बेईमानी के उपाय करके आदमी आगे होना चाहेगादूसरे जैसा होना चाहेगा। और जब हर आदमी दूसरे जैसा होना चाहता है तो क्या फल होता हैफल यह होता है--अगर एक बगीचे में सब फूलों का दिमाग फिर जाए या बड़े-बड़े आदर्शवादी नेता वहां पहुंच जाएं या बड़े-बड़े शिक्षक वहां पहुंच जाएं और उनको समझाएं कि देखो,चमेली का फूल चंपा जैसा हो जाएचमेली का फूल चंपा जैसाचंपा का फूल जुही जैसाक्योंकि देखोजुही कितनी सुंदर है...और सब फूलों को अगर पागलपन आ जाएहालांकि आ नहीं सकता! क्योंकि आदमी से पागल फूल नहीं है।
 आदमी से ज्यादा जड़ता उनमें नहीं है कि वे चक्कर में पड़ जाएं। शिक्षकों केउपदेशकों केसंन्यासियों केसाधुओं के,आदर्शवादियों केचक्कर में कोई फूल नहीं पड़ेगा। लेकिन फिर भी समझ लेंकल्पना कर लें कि कोई आदमी पहुंच जाए और समझाए उनको और वे चक्कर में आ जाएं और चमेली का फूल चंपा का फूल होने लगे तो क्या होगा उस बगिया में। उस बगिया में फूल फिर पैदा नहीं होंगेउस बगिया में फिर फूल पैदा ही नहीं हो सकते। उस बगिया में फिर पौधे मुरझा जाएंगेमर जाएंगे। क्योंक्योंकि चंपा लाख उपाय करे तो चमेली नहीं हो सकतीवह उसके स्वभाव में नहीं हैवह उसके व्यक्तित्व में नहीं हैवह उसकी प्रकृति में नहीं है। चमेली तो चंपा हो ही नहीं सकती। लेकिन क्या होगाचमेली होने की कोशिश में वह चंपा भी नहीं हो पाएगी। वह जो हो सकती थीउससे भी वंचित रह जाएगी।
मनुष्य के साथ यह दुर्भाग्य हुआ है। यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य हैअभिशाप है जो मनुष्य के साथ हुआ है कि हर आदमी किसी और जैसा होना चाह रहा है और कौन सिखा रहा है यहयह षडयंत्र कौन कर रहा हैयह हजार-हजार साल से शिक्षा कर रही है। वह कह रही राम जैसे बनोबुद्ध जैसे बनो। या अगर पुरानी तस्वीरें जरा फीकी पड़ गईंतो गांधी जैसे बनोविनोबा जैसे बनो। किसी न किसी जैसे बनो लेकिन अपने जैसा बनने की भूल कभी मत करनाकिसी जैसे बननाकिसी दूसरे जैसे बनो क्योंकि तुम तो बेकार पैदा हुए हो। असल में तो गांधी मतलब से पैदा हुए। तुम्हारा तो बिलकुल बेकार हैभगवान ने भूल की जो आपकोे पैदा किया। क्योंकि अगर भगवान समझदार होता तो राम और गांधी और बुद्ध ऐसे कोई दस पंद्रह आदमी के टाइप पैदा कर देता दुनिया में। या अगरबहुत ही समझदार होताजैसा कि सभी धर्मों के लोग बहुत समझदार हैंतो फिर एक ही तरह के टाइप’ पैदा कर देता। फिर क्या होता?
अगर दुनिया में समझ लें कि तीन अरब राम ही राम हों तो कितनी देर दुनिया चलेगीपंद्रह मिनट में सुसाइड हो जाएगा। टोटलयूनिवर्सल सुसाइड हो जाएगा। सारी दुनिया आत्मघात कर लेगी। इतनी बोर्डम पैदा होगी राम ही राम को देखने से। सब मर जाएगा एक दमकभी सोचासारी दुनिया में गुलाब ही गुलाब के फूल हो जाएं और सब पौधे गुलाब के फूल पैदा करने लगेंक्या होगाफूल देखने लायक भी नहीं रह जाएंगे। उनकी तरफ आंख करने की भी जरूरत नहीं रह जाएगी। नहींयह व्यर्थ नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व है। यह गौरवशाली बात है कि आप किसी दूसरे जैसे नहीं हैं और यह कंपेरिजन कि कोई ऊंचा है और आप नीचे होनासमझी का है। कोई ऊंचा और नीचा नही है! प्रत्येक व्यक्ति अपनी जगह है और प्रत्येक व्यक्ति दूसरा अपनी जगह है। नीचे-ऊंचे की बात गलत है। सब तरह का वैल्युएशन गलत है। लेकिन हम यह सिखाते रहे हैं।
विद्रोह का मेरा मतलब हैइस तरह की सारी बातों पर विचारइस तरह की सारी बातों पर विवेकइस तरह की एक-एक बात को देखना कि मैं क्या सिखा रहा हूं इस बच्चे को। जहर तो नहीं पिला रहा हूंबड़े प्रेम से भी जहर पिलाया जा सकता है और बड़े प्रेम से शिक्षकमां-बाप जहर पिलाते रहे हैंलेकिन यह टूटना चाहिए।
दुनिया में अब तक धार्मिक क्रांतियां हुई हैं। एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोग हो गए। कभी समझाने-बुझाने से हुएकभी तलवार छाती पर रखने से हो गए लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। हिंदू मुसलमान हो जाए तो वैसे का वैसा आदमी रहता हैमुसलमान ईसाई हो जाए तो वैसा का वैसा आदमी रहता हैकोई फर्क नहीं पड़ा धार्मिक क्रांतियों से।
 राजनैतिक क्रांतियां हुई हैं। एक सत्ताधारी बदल गयादूसरा बैठ गया। कोई जरा दूर की जमीन पर रहता हैवह बदल गया,तो जो पास की जमीन पर रहता हैवह बैठ गया। किसी की चमड़ी गोरी थी वह हट गया तो किसी की चमड़ी काली थी वह बैठ गयालेकिन भीतर का सत्ताधारी वही का वही है।
आर्थिक क्रांतियां हो गई हैं दुनिया में। मजदूर बैठ गएपूंजीपति हट गए। लेकिन बैठने से मजदूर पूंजीपति हो गया। पूंजीवाद चला गया तो उसकी जगह मैनेजर्स आ गए। वे उतने ही दुष्टउतने ही खतरनाक! कोई फर्क नहीं पड़ा। वर्ग बने रहे। पहले वर्ग था,जिसके पास धन है--वहऔर जिसके पास धन नहीं है--वह। अब वर्ग हो गया--जिसमें धन वितरित किया जाता है--वह और जो धन वितरित करता है--वह। जिसके पास ताकत हैस्टेट में जो है वहराज्य में जो है वहऔर राज्यहीन जो है वह। नया वर्ग बन गया,लेकिन वर्ग कायम रहा।
अब तक इन पांच-छह हजार वर्षों में जितने प्रयोग हुए हैं मनुष्य के लिएकल्याण के लिएसब असफल हो गए। अभी तक एक प्रयोग नहीं हुआ हैवह है शिक्षा में क्रांति। वह प्रयोग शिक्षक के ऊपर है कि वह करे। और मुझे लगता हैयह सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है। शिक्षा में क्रांति सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है। राजनीतिकआर्थिक या धार्मिक कोई क्रांति का इतना मूल्य नहीं है जितना शिक्षा में क्रांति का मूल्य है। लेकिन शिक्षा में क्रांति कौन करेगावे विद्रोही लोग कर सकते हैं जो सोचेंविचार करें--हम यह क्या कर रहे हैं! और इतना तय समझ लें कि जो भी आप कर रहे हैं वह जरूर गलत है क्योंकि उसका परिणाम गलत है। यह जो मनुष्य पैदा हो रहा हैयह जो समाज बन रहा हैयह जो युद्ध हो रहे हैंयह जो सारी हिंसा चल रही हैयह जो सफरिंग इतनी दुनिया में हैइतनी पीड़ाइतनी दीनतादरिद्रता हैयह कहां से आ रही है। यह जरूर हम जो शिक्षा दे रहे हैं उसमें कुछ बुनियादी भूलें हैं। तो यह विचार करेंजागें। लेकिन आप तो कुछ और हिसाब में पड़े रहते होंगे।
शिक्षकों के सम्मेलन होते हैं तो वे विचार करते हैंविद्यार्थी बड़े अनुशासनहीन हो गएइनको डिसिप्लिन में कैसे लाया जाए! कृपा करेंइनको पूरा अनुशासनहीन हो जाने देंक्योंकि आपके डिसिप्लिन का परिणाम क्या हुआ हैपांच हजार साल से--डिसिप्लिन में तो थेक्या हुआऔर डिसिप्लिन सिखाने का मतलब क्या हैडिसिप्लिन सिखाने का मतलब है कि हम जो कहें उसको ठीक मानो। हम ऊपर बैठेंतुम नीचे बैठोहम जब निकलें तो दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करो या और ज्यादा डिसिप्लिन हो तो पैर छुओ और हम जो कहें उस पर शक मत करोहम जिधर कहें उधर जाओहम कहें बैठो तो बैठोहम कहें उठो तो उठो। यह डिसिप्लिन हैडिसिप्लिन के नाम पर आदमी को मारने की करतूतें हैंउसके भीतर कोई चैतन्य न रह जाएउसके भीतर कोई होश न रह जाए,उसके भीतर कोई विवेक और विचार न रह जाए।
मिलिटरी में क्या करते हैंएक आदमी को तीन-चार साल तक कवायद करवाते हैं--लेफ्ट टर्नराइट टर्न। कितनी बेवकूफी की बातें हैं कि आदमी से कहो कि बाएं घूमोदाएं घूमो। घुमाते रहो तीन-चार साल तकउसकी बुद्धि नष्ट हो जाएगी। एक आदमी को बाएं-दाएं घुमाओगेक्या होगाकितनी देर तक उसकी बुद्धि स्थिर रहेगी। उससे कहो बैठोउससे कहो खड़े होओउससे कहो दौड़ो और जरा इनकार करे तो मारो। तीन-चार वर्ष में उसकी बुद्धि क्षीण हो जाएगीउसकी मनुष्यता मर जाएगी। फिर उससे कहोराइट टर्नतो वह मशीन की तरह घूमता है। फिर उससे कहोबंदूक चलाओतो वह मशीन की तरह बंदूक चलाता है। आदमी को मारोतो वह आदमी को मारता है। वह मशीन हो गयावह आदमी नहीं रह गया--यह डिसिप्लिन हैऔर यह है डिसिप्लिनहम चाहते हैं कि बच्चों में भी हो। बच्चों में मिलिट्राइजेशन हो...उनको भी एन.सी.सी. सिखाओमार डालो दुनिया कोएन.सी.सी. सिखाओसैनिक शिक्षा दोबंदूक पकड़वाओलेफ्ट-राइट टर्न करवाओमारो दुनिया को। पांच हजार साल में आदमी को...मैं नहीं समझता कि कोई समझ भी आई हो कि चीजों के क्या मतलब हैडिसिप्लिनड आदमी डेड होता है। जितना अनुशासित आदमी होगा उतना मुर्दा होगा।
तो क्या मैं यह कह रहा हूं कि लड़कों को कहो कि विद्रोह करोभागोदौड़ोकूदो क्लास मेंपढ़ने मत दो। यह नहीं कह रहा हूं। यह कह रहा हूं कि आप प्रेम करो बच्चों को। बच्चों के हितभविष्य की मंगलकामना करो। उस प्रेम और मंगलकामना से एक डिसिप्लिन आनी शुरू होती है जो थोपी हुई नहीं हैजो बच्चे के विवेक से पैदा होती है। एक बच्चे को प्रेम करो और देखो कि वह प्रेम उसमें एक अनुशासन लाता है। वह अनुशासन लेफ्ट-राइट टर्न करने वाला अनुशासन नहीं है। वह उसकी आत्मा से जगता हैप्रेम की ध्वनि से जगता हैथोपा नहीं जाता हैउसके भीतर से आता है। उसके विवेक को जगाओउसके विचार को जगाओउसको बुद्धिहीन मत बनाओ। उससे यह मत कहो कि हम जो कहते हैं वही सत्य है।
सत्य का पता है आपकोलेकिन दंभ कहता है कि मैं जो कहता हूं वही सत्य है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप तीस साल पैदा पहले हो गएवह तीस साल पीछे हो गया तो आप सत्य के जानकार हो गए और वह सत्य का जानकार नहीं रहा। जितने अज्ञान में आप हो उससे शायद हो सकता है वह कम अज्ञान में हो क्योंकि अभी वह कुछ भी नहीं जानता हैऔर आप न मालूम कौन-कौन सी नासमझियांन मालूम क्या-क्या नाॅनसेंस जानते होंगेलेकिन आप ज्ञानी हैं क्योंकि आपकी तीस साल उम्र ज्यादा है। क्योंकि आप ज्ञानी हैंआपके हाथ में डंडा है इसलिए आप उसको डिसिप्लिनड करना चाहते हैं। नहींडिसिप्लिनड कोई किसी को नहीं करना चाहिएन कोई किसी को करे तो दुनिया बेहतर हो सकती है। प्रेम करेंप्रेम आपका हक है। आप प्रेमपूर्ण जीवन जीयें। आप मंगल कामना करें उसकीसोचें उसके हित के लिए कि क्या हो सकता हैवैसा करें। और वह प्रेमवह मंगल कामना असंभव है कि उसके भीतर अनुशासन न ला देआदर न ला दे!
फर्क होगा। अभी जो जितना चैतन्य बच्चा है वह उतना ही ज्यादा इनडिसिप्लिन में होगा और जो जितना ईडियट हैजो जितना जड़बुद्धि है वह उतना डिसिप्लिन में होगा। जिस बात को में कह रहा हूं अगर प्रेम के माध्यम से अनुशासन आए तो जो जितना ईडियट है उसमें कोई अनुशासन पैदा न होगाजो जितना चैतन्य है उसमें उतना ज्यादा अनुशासन पैदा होगा। अभी अनुशासन में वह है जो डल हैजिसमें कोई जीवन नहीं हैस्फुरणा नहीं है। अभी वह अनुशासनहीन है--जिसमें चैतन्य हैविचार है,अगर प्रेम हो तो वह अनुशासनबद्ध होगाजिसमें विचार है और चैतन्य हैऔर वह अनुशासनहीन होगा जो जड़ है।
जड़ता के अनुशासन का कोई मूल्य हैनहींचैतन्यपूर्वक जो अनुशासन है उसका मूल्य है क्योंकि चैतन्यपूर्वक अनुशासन का अर्थ यह होता है कि वह विचारपूर्वक अनुशासन में है और अगर आप गलत अनुशासन की मांग करेंगे तो वह इनकार कर देगा। अगर पाकिस्तान-हिंदुस्तान के युवक विवेकपूर्वक अनुशासन में हों तो क्या यह संभव है कि पाकिस्तान की हुकूमत उनसे कहे कि जाओ,और हिंदुस्तान के लोगों को मारो या हिंदुस्तान के युवकअगर अनुशासन में विवेकपूर्वक हों तो क्या यह संभव है कि कोई राजनीतिज्ञ उनसे कहे कि जाओ और पाकिस्तान के लोगों को मारो!...तो वह कहेंगे कि यह बेवकूफी की बातें बंद करो। हम समझते हैं कि क्या विवेकपूर्ण हैयह हम नहीं कर सकतेलेकिन अभी तो जड़बुद्धियों को अनुशासन सिखाया गया हैउनसे कहा है जाए--मारो,फिर वे बिलकुल नहीं देखतेक्योंकि अनुशासन ही सत्य हैउसको ही मानना है।
दुनिया में राजनीतिज्ञों नेधर्म पुरोहितों ने खूब शिक्षा दी है कि अनुशासित होना चाहिए। क्योंक्योंकि अनुशासित आदमी में कोई विद्रोह नहीं होताकोई विवेक नहीं होताकोई विचार नहीं होता। उनकी तो पूरी कोशिश हैसारी दुनिया मिलिटरी कैंप हो जाए। कोई आदमी कोई गड़बड़ न करेउनकी कोशिश चल रही है हजार-हजार ढंग से।
शायद आपको पता हो या न पता होअब तक बहुत से रास्ते अख्तियार किए गए हैं। अब रूस में उन्होंने माइंड-वाॅश निकाल लिया हैएक मशीन बना ली है। जिस आदमी के दिमाग में विद्रोह होगाविचार होगा उसके दिमाग को वह मशीन के द्वारा साफ कर देंगेउसके विचार को खत्म कर देगें। क्योंकि विद्रोही आदमी खतरनाक हैवह हुकूमत के खिलाफ बोल सकता हैलड़ सकता है,लोगों को भड़का सकता है कि यह गलत हैयह जो व्यवस्था हैइसलिए उसके दिमाग को ठंडा कर दो। पहले अनुशासन की तरकीब लगाते थेवह पूरी कारगर नहीं हुई। फिर भी कुछ विद्रोही पैदा हो जाते हैं। बहुत कम होते हैंलेकिन फिर भी कुछ हो ही जाते हैं। अब उन्होंने नई से नई तरकीब निकाली है कि जिस बच्चे के दिमाग में ऐसा लगे कि शक-शुबहा है इसके दिमाग को ही ठीक कर दो। बिजली की जोरदार करंट इसके दिमाग में पहुंचाओइसके दिमाग को शिथिल कर दो। ये बड़े खतरनाक मामले हैं जो सारी दुनिया में चल रहे हैं। एटम बमहाइड्रोजन बम से भी ज्यादा खतरनाक ईजाद यह है।
लेकिन क्या शिक्षक इसमें सहयोगी होगामैं इस प्रश्न पर ही अपनी चर्चा को आप पर छोड़ना चाहूंगा कि क्या आप इस दुनिया से सहमत हैंक्या इस मनुष्य से सहमत हैं जैसा आज आदमी हैक्या इस इंतजाम से सहमत हैं आपइन युद्धों सेहिंसा सेबेईमानी से सहमत हैंअगर सहमत नहीं हैं तो पुनर्विचार करिएआपकी शिक्षा में कहीं बुनियादी भूल है। आप जो दे रहे हैंवह गलत है।
शिक्षक एक विद्रोही होविवेक और विचारपूर्ण उसकी जीवन दृष्टि हो तो वह समाज के लिए हितकर हैभविष्य में नये से नये समाज के पैदा होने में सहयोगी है। और अगर यह नहीं है तो वह केवल पुराने मुर्दों को नये बच्चों के दिमाग में भरने के अतिरिक्त उसका और कोई काम नहीं है। इस काम को करता चला जाए।
एक क्रांति होनी चाहिएएक बड़ी क्रांति होनी चाहिए कि शिक्षा का आमूल ढांचा तोड़ दिया जाए और एक नया ढांचा पैदा किया जाए और उस नये ढांचे के मूल्य अलग हों। सफलता उसका मूल्य न होमहत्वाकांक्षा उसका मूल्य न होआगे और पीछे होना सम्मान-अपमान की बातें न हों। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की कोई तुलना न हो। प्रेम होप्रेम से बच्चों के विकास की चेष्टा हो। तो एक नईबिलकुल एक अदभुत सुवास से भरी हुई दुनिया पैदा की जा सकती है।
यह थोड़ी सी बातें मैंने आपसे कहींइस खयाल से कहीं कि कोई नींद में हो तो थोड़ा-बहुत तो जागे। लेकिन कई की नींद इतनी गहरी होती है कि वह सिर्फ यही समझ रहे होंगे कि क्या गड़बड़ चल रहा हैनींद सब खराब किए दे रहे हैं। लेकिन अगर थोड़ा-बहुत भी जागेंथोड़ा-बहुत आंख खोल कर देखें तो जो मैंने कहा हैशायद उसमें से कोई बात उपयोगी लगेठीक लगे।
यह मैं नहीं कहता हूं कि मैंने जो कहा है वह सच है और ठीक है। क्योंकि यह तो पुराना शिक्षक कहता था। यह तो आप कहते हैं। मैं तो यह कह रहा हूं कि मैंने अपनी दृष्टि आपको बताईवह बिलकुल ही गलत हो सकती है। हो सकता हैउसमें कणमात्र भी सत्य न हो इसलिए मैं यह नहीं कहता कि मैंने जो कहा है उसको आप विश्वास कर लें। मैं कहता हूंउस पर विचार करना। थोड़ा सा विचार करना और अगर कुछ उसमें से ठीक लगे तो वह मेरी बात नहीं होगी। वह आपका अपना विचार होगाउस कारण आप मेरे अनुयायी नहीं बन जाएंगे। उस कारण आपने मेरी बात स्वीकार की ऐसा समझने की कोई जरूरत नहीं हैक्योंकि वह आपने अपने विवेक से जानी और पहचानीवह आपकी बन गई है। यह थोड़ी सी बातें कहीं ताकि आप कुछ विचार करें। दुनिया में इस वक्त बहुत धक्के देने की जरूरत है ताकि कुछ विचार पैदा हो। लोग करीब-करीब सो गए हैंकरीब-करीब मर ही गए हैं और सब चला जा रहा है। भगवान करे थोड़ा-बहुत धक्का कई तरफ से लगे और आंखें खुलें और थोड़ा सोचें।
और शिक्षक की सबसे बड़ी जिम्मेवारी हैराजनीतिज्ञों से बचेराष्ट्रपतियों सेप्रधानमंत्रियों से बचे। इन्हीं नासमझों की वजह से तो दुनिया में परेशानी है सारीइसी पाॅलिटिशियन की वजह से तो सारा उपद्रव है। इनसे बचे। और बच्चों में पाॅलिटिशियंस पैदा न होने देंलेकिन वह पैदा कर रहा है एम्बिशन। नंबर एक आओतो फिर आगे क्या होगा। फिर आगे कहां जाएंगे। फिर नंबर एक तो केवल पाॅलिटिक्स में ही आ सकते हैंऔर तो कोई आता नहीं। और किसी की अखबार में फोटो नहीं छपतीनाम नहीं छपता। फिर तो वहीं आ सकते हैंफिर तो वह वहीं जाएगा।।
बच्चों में प्रतिस्पर्धा पैदा न होने दें। प्रेम जगाएंजीवन के प्रति आनंद जगाएंजीवन के प्रति उल्लास जगाएं--प्रतियोगिता नहींप्रतिस्पर्धा नहीं। क्योंकि जो दूसरों से जूझता हैवह धीरे-धीरे जूझने में समाप्त हो जाता है। और जो अपने आनंद को खोजता हैअपने आनंद कोदूसरे से प्रतियोगिता को नहींउसका जीवन एक अदभुत फूल की भांति हो जाता है--जिसमें सुवास होती है,सौंदर्य होता है।
परमात्मा करेयह बुद्धि आप में आए। परमात्मा करेयह विद्रोह आपमें आएइसकी कामना करता हूं।

मेरी बातों को आपने इतनी शांति से सुना हैउसके लिए बहुत-बहुत अनुगृहीत हूं। और सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।

No comments:

Post a Comment