🔴जन्म और मृत्यु के बीच में जो समय बीता, वही जीवन है?
अगर वही जीवन है, तब तो बड़े आश्चर्य की बात है, सच तो यह है कि जन्म और मृत्यु के बीच में जो समय बीतता है, उसका जीवन से कोई भी संबंध नहीं। जन्म और मृत्यु के बीच का समय, केवल रोज-रोज मरते जाने की प्रक्रिया का समय है, जीवन का नहीं। एक ग्रेजुअल डेथ है, जो जन्म से शुरु होती है, मृत्यु पर पूरी हो जाती है। हम रोज-रोज धीरे-धीरे मरते जाते हैं, इसी को हम जीवन समझ लेते हैं। एक घड़ी भर नया बिता देंगे, एक घड़ी भर और मर जायेंगे। मरना कोई आकस्मिक बात तो नहीं है कि किसी भी एक दिन आप मर जाएंगे, मैं मर जाऊंगा, मर जाना एक लंबी प्रोसेस है, एक लंबी प्रक्रिया है। रोज-रोज हम मरते हैं, इसलिए एक दिन हम मर जाते हैं। रोज हमारे भीतर कुछ मरता जाता है, मरता जाता है। एक दिन यह मरना पूरा हो जाता है। और हम कहते हैं मृत्यु आ गई। जिसे हम जीवन कहते हैं, वह केवल एक मरने की प्रक्रिया से ज्यादा नहीं है। और सच है यह बात अगर यह जीवन होता, तो मृत्यु कैसे आ सकती थी? जीवन की भी और मृत्यु हो सकती है! जीवन और मृत्यु तो बड़ी विरोधी बातें हैं, इनका क्या संबंध? जीवन की भी मृत्यु हो सकती है? मरने की प्रक्रिया का अंत मृत्यु में हो सकता है, लेकिन जीवन की प्रक्रिया का अंत मृत्यु में कैसे होगा? जीवन के रास्ते पर हम चलेंगे तो अंत में परम जीवन उपलब्ध होना चाहिए। मृत्यु के रास्ते पर हम चलेंगे, तो अंत में मृत्यु आएगी। जो अंत में आता है, उसी से तो पहचाना जाता है।
एक बीज हम बोते हैं और कड़ुवे फल लगते हैं, तो क्या हम नहीं समझ पाएंगे कि जो कड़वे फल लगे वे बीज में ही छिपे थे? जो फल की तरह प्रकट हुआ, वह बीज में मौजूद रहा होगा। अन्यथा फल में प्रकट कैसे होता? मौत का फल लगता है, जिसे हम जीवन कहते हैं उसमें। तो क्या यह थोड़ी सी समझ न होगी, जिसे हमने जन्म कहा, उस जन्म के बीज में ही मौत छिपी रही होगी। धीरे-धीरे प्रकट हुई।
एक बीज हम बोते हैं और कड़ुवे फल लगते हैं, तो क्या हम नहीं समझ पाएंगे कि जो कड़वे फल लगे वे बीज में ही छिपे थे? जो फल की तरह प्रकट हुआ, वह बीज में मौजूद रहा होगा। अन्यथा फल में प्रकट कैसे होता? मौत का फल लगता है, जिसे हम जीवन कहते हैं उसमें। तो क्या यह थोड़ी सी समझ न होगी, जिसे हमने जन्म कहा, उस जन्म के बीज में ही मौत छिपी रही होगी। धीरे-धीरे प्रकट हुई।
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