कल भ्रांति है। आज ही सत्य है। आने वाला क्षण भी आएगा या नहीं, कोई भी कह नहीं सकता। जो आ गया है, बस वही आ गया है।
तो कल पर छोड़ कैसे सकते हो? कल है कहौ?
कल पर छोड़ने की आदत संसार में खतरनाक से खतरनाक आदत है। आज ही जी लो। लेकिन तुम्हें सदा यही सिखाया गया है, कल पर छोड़ो। क्योंकि तुम्हें यह सिखाया गया है, हर चीज की तैयारी करनी होगी। तैयारी के लिए कल की जरूरत है। आज कैसे भोगोगे? सितार बजानी है? तो पहले सीखनी भी तो पड़ेगी। सीखने के लिए कल तक ठहरना पड़ेगा। गीत गाना है? तो कंठ को साधना भी तो पड़ेगा। आवाज को व्यवस्था तो देनी होगी। तो कल की जरूरत पड़ेगी।
मगर मैं तुमसे कहता हूं, भगवान को भोगने के लिए कुछ भी तैयारी की जरूरत नहीं है। जो बिना तैयारी उपलब्ध है, वही भगवान है। जो तैयारी से मिलता है, उसका नाम ही संसार है। तुम्हें बड़ी उलटी लगेगी मेरी बात।
कल पर छोड़ने की आदत संसार में खतरनाक से खतरनाक आदत है। आज ही जी लो। लेकिन तुम्हें सदा यही सिखाया गया है, कल पर छोड़ो। क्योंकि तुम्हें यह सिखाया गया है, हर चीज की तैयारी करनी होगी। तैयारी के लिए कल की जरूरत है। आज कैसे भोगोगे? सितार बजानी है? तो पहले सीखनी भी तो पड़ेगी। सीखने के लिए कल तक ठहरना पड़ेगा। गीत गाना है? तो कंठ को साधना भी तो पड़ेगा। आवाज को व्यवस्था तो देनी होगी। तो कल की जरूरत पड़ेगी।
मगर मैं तुमसे कहता हूं, भगवान को भोगने के लिए कुछ भी तैयारी की जरूरत नहीं है। जो बिना तैयारी उपलब्ध है, वही भगवान है। जो तैयारी से मिलता है, उसका नाम ही संसार है। तुम्हें बड़ी उलटी लगेगी मेरी बात।
मैं तुमसे फिर कहूं, जो साधना से मिलता है, उसकॉ नॉम संसार है। जो मिला ही हुआ है, उसका नाम भगवान है। संसार के लिए कल की जरूरत है, समय की जरूरत है, भगवान के लिए कोई जरूरत नहीं।
धार्मिक व्यक्ति भगवान के खिलाफ नहीं होता। धर्म सभी भगवान के खिलाफ हैं। धार्मिक व्यक्ति तो कभी—कभार होता है। जो धर्मों की जमींतें हैं, वे परमात्मा के विपरीत हैं। तुम्हारे महात्मा सभी परमात्मा के विपरीत हैं। महात्मा तुम्हें जिंदगी को छोड़ना सिखाते हैं, और परमात्मा ने तुम्हें जिंदगी दी है। और महात्मा कहते हैं छोड़ो, और परमात्मा कहता है भोगो, जीवन परम भोग है।
तुमने मेरी बातों को ठीक से समझा, तो मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि तुम अपने परमात्मा को अपने जीवन की ऊंचाई बनाओ। तुम अपने परमात्मा को अपने जीवन के विपरीत मत रखो अन्यथा तुम अड़चन में पड़ोगे। न तुम जिंदगी के हो पाओगे, न परमात्मा के हो पाओगे। तुम दो नावों में सवार हो जाओगे, जो विपरीत जा रही हैं। तुम परमात्मा को जीवन का स्वर समझो, और तुम जीवन के प्रतिपल को प्रार्थना बनाओ। तुम जीवन को इस ढंग से जीओ कि वह धार्मिक हो जाए। धर्म के लिए जीवन में अलग से खंड मत खोजो। धर्म को पूरे जीवन पर फैल जाने दो।
धार्मिक व्यक्ति भगवान के खिलाफ नहीं होता। धर्म सभी भगवान के खिलाफ हैं। धार्मिक व्यक्ति तो कभी—कभार होता है। जो धर्मों की जमींतें हैं, वे परमात्मा के विपरीत हैं। तुम्हारे महात्मा सभी परमात्मा के विपरीत हैं। महात्मा तुम्हें जिंदगी को छोड़ना सिखाते हैं, और परमात्मा ने तुम्हें जिंदगी दी है। और महात्मा कहते हैं छोड़ो, और परमात्मा कहता है भोगो, जीवन परम भोग है।
तुमने मेरी बातों को ठीक से समझा, तो मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि तुम अपने परमात्मा को अपने जीवन की ऊंचाई बनाओ। तुम अपने परमात्मा को अपने जीवन के विपरीत मत रखो अन्यथा तुम अड़चन में पड़ोगे। न तुम जिंदगी के हो पाओगे, न परमात्मा के हो पाओगे। तुम दो नावों में सवार हो जाओगे, जो विपरीत जा रही हैं। तुम परमात्मा को जीवन का स्वर समझो, और तुम जीवन के प्रतिपल को प्रार्थना बनाओ। तुम जीवन को इस ढंग से जीओ कि वह धार्मिक हो जाए। धर्म के लिए जीवन में अलग से खंड मत खोजो। धर्म को पूरे जीवन पर फैल जाने दो।
लेकिन दुखी लोग हैं, जो दुख को पकड़ते हैं। वे जीवन में सब तरह के दुख का आयोजन करते हैं। पहले धन के नाम पर दुखी होते हैं, पद के नाम पर दुखी होते हैं, फिर किसी तरह इनसे छुटकारा होता है तो भगवान के नाम पर दुखी होते हैं। लेकिन दुख की आदत उनकी छूटती नहीं।
तुम परमात्मा से छुट्टी न चाहो। तब तो एक ही उपाय है कि तुम जो करो, वह परमात्मा को ही निवेदित हो, समर्पित हो। तुम जो करो, उसमें ही प्रार्थना की गंध समाविष्ट होने लगे। प्रार्थना की धूप तुम्हारे जीवन को चारों तरफ से घेर ले, सुवासित कर दे। और अगर तुमने किसी भविष्य के परमात्मा के सामने प्रार्थना की तो वह झूठी रहेगी, क्योंकि परमात्मा सदा वर्तमान का है। भविष्य के परमात्मा तुम्हारी ईजादें हैं। धोखे हैं। और अगर तुमने किसी भविष्य के परमात्मा के सामने प्रार्थना की तो उस प्रार्थना में मस्ती न होगी, मस्ती तो केवल अभी हो सकती है।
निश्चित, यही मेरी देशना है। परमात्मा को जीना है, तो अभी। और कोई उपाय नहीं।
तुम परमात्मा से छुट्टी न चाहो। तब तो एक ही उपाय है कि तुम जो करो, वह परमात्मा को ही निवेदित हो, समर्पित हो। तुम जो करो, उसमें ही प्रार्थना की गंध समाविष्ट होने लगे। प्रार्थना की धूप तुम्हारे जीवन को चारों तरफ से घेर ले, सुवासित कर दे। और अगर तुमने किसी भविष्य के परमात्मा के सामने प्रार्थना की तो वह झूठी रहेगी, क्योंकि परमात्मा सदा वर्तमान का है। भविष्य के परमात्मा तुम्हारी ईजादें हैं। धोखे हैं। और अगर तुमने किसी भविष्य के परमात्मा के सामने प्रार्थना की तो उस प्रार्थना में मस्ती न होगी, मस्ती तो केवल अभी हो सकती है।
निश्चित, यही मेरी देशना है। परमात्मा को जीना है, तो अभी। और कोई उपाय नहीं।
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