आज हम अप्सरा साधना तथा उसके नियम की बात करेगे ये सब जानकारी आपको सिर्फ ज्ञान बढाने के उद्देश्य से दिया जा रहा है. प्रत्येक धर्म मे यह कहा जाता है कि स्वर्ग मे जाने वालो को भोगविलास तथा दिव्यसुख की प्राप्ती होती है. अप्सराये उनका मनोरंजन करती है. यूनानी शास्त्रो मे अप्सराओ को "निफ" नाम से जाना जाता है. ये अत्यंत रूपवती और दिव्य शक्तियो से संपन्न होती है. इन अप्सराओ को इस्लाम मे "हूर" कहा गया है. इनका कार्य नृत्य, गायन, वादन कर सबका मनोरंजन करना होता है. ये अत्यंत खूबसूरत तथा भरपूर यौवन से भरी हुयी षोडस वर्षीया अप्सरा होती है. षोडस वर्षीया का अर्थ है कि १६ वर्ष के ऊपर न हो. इनके शरीर से निकलने वाली खुशबू लोगो को आकर्षित करती रहती है. ये अगर साधक के ऊपर प्रसन्न हो जाय तो उनको कभी धोखा नही देती और भरपूर सुख प्रदान करती रहती है. इसके अलावा इन्हे रिषी-मुनी की तपस्या को भंग करने के लिये भी भेजा जाता था. इनमे से प्रमुख अप्सराओ के नाम है रंभा, मेनका, तिलोत्तमा, उर्वशी. देखा जाय तो हमारे भारतीय समाज मे अप्सराये रूप और सौंदर्य की पर्याय बन चुकी है.
अब हम जानना चाहेगे कि इनकी साधना इस कलियुग मे लोग क्यो करते है?
जब भी कोई ब्यक्ति किसी देवी-देवता, यक्ष, गंधर्य, अपसरा की साधना करता है तो उनके गुण उस साधक मे आने शुरु हो जाते है जैसे कि...
अगर हम माता लक्ष्मी की साधना करते है तो लक्ष्मी के गुण जैसे बुद्धी का सही उपयोग, सही समय मे सही निर्णय लेना, भौतिक सुख, ब्यापार मे बृद्धी ईत्यादि गुण होने की वजह से यही गुण साधक को भी मिलने लगते है.
हनुमान की साधना करते है तो उनके गुण जैसे आत्मविश्वास, पराक्रम, शक्ति, विजय तथा ब्रम्हचर्य जैसे गुण होने की वजह से साधक को भी वही गुण मिलने लगते है.
इसी तरह से अप्सरा की साधना करने से उनके गुण जैसे कि रूप, सुंदरता, यौवन, हमेशा आनंद मे रहना, सौंदर्य, सम्मोहन, आकर्षण, हमेशा जवान दिखना ईत्यादि गुण होने की वजह से वही गुण साधक मे भी आने लगते है. इसीलिये आज के युग मे अप्सरा की साधना स्त्री तथा पुरुष करने लगे है.
आईये जानते है क्या क्या लाभ मिलते है इस अप्सरा साधना से....
अप्सरा साधना के नियम
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